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कृषि क्षेत्र में ट्राइकोडर्मा का महत्व

कृषि क्षेत्र में ट्राइकोडर्मा का महत्व

जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का विशेष महत्व है। यह एक तरह का फफूंद है जो खेत की मिट्टी एवं पौधों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसलिए इसे मित्र फफूंद भी कहा जाता है। यह कई तरह के होते हैं। ट्राइकोडर्मा के विभिन्न किस्मों में ट्राइकोडर्मा विरिडी एवं ट्राइकोडर्मा हर्जियानम सबसे ज्यादा प्रचलित है। कृषि में ट्राइकोडर्मा का बहुत महत्व है। अनेक फायदों के बाद भी कई किसान ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल, इसके लाभ, उपयोग करते समय सावधानियां, आदि जानकारियों से अनजान हैं। अगर आप भी ट्राइकोडर्मा के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है?

  • विभिन्न कृषि कार्यों में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किया जाता है।

  • खेत तैयार करते समय मिट्टी उपचारित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

  • इससे बुवाई से पहले बीज उपचारित किया जाता है।

  • मुख्य खेत में रोपाई से पहले नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित किया जाता है।

  • खड़ी फसलों में भी विभिन्न रोगों पर नियंत्रण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

कैसे काम करता है ट्राइकोडर्मा?

  • ट्राइकोडर्मा फसलों के लिए हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के विभिन्न रोगों पर नियंत्रण में सहायक हैं।

ट्राइकोडर्मा प्रयोग करने के क्या फायदे हैं?

  • यह फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम, स्कलैरोटिनिया, आदि फफूंदों को नष्ट करता है। जिससे पौधे विभिन्न रोगों की चपेट में आने से बचते हैं।

  • खेत तैयार करते समय इसका इस्तेमाल करने से मिट्टी में पहले से मौजूद हानिकारक कवक नष्ट हो जाते हैं।

  • बीज एवं जड़ों को उपचारित करने से पौधों को कई घातक रोगों से बचाया जा सकता है।

  • इसके प्रयोग से फसलों पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव भी नहीं होता है।

  • इसमें किसी तरह के हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए इसके प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता पर विपरीत प्रभाव नहीं होता है।

ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करते समय किन बातों का रखें ध्यान?

  • ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को धूप में न रखें। तेज धूप से इसमें मौजूद लाभदायक फफूंद नष्ट हो सकते हैं।

  • ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को किसी तरह के फफूंदनाशक एवं कीट नाशक से उपचारित न करें।

  • यदि बीज को फफूंदनाशक या कीट नाशक से उपचारित करना है तो फफूंदनाशक या कीट नाशक सेव बीज उपचारित करने के कुछ समय बाद ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें।

  • ट्राइकोडर्मा में मौजूद फफूंद के विकास के लिए नमी की आवश्यकता होती है। इसलिए सूखी मिट्टी में इसका प्रयोग करने से बचें।

  • इसके प्रयोग के बाद 4-5 दिनों तक खेत में रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें।

  • गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने के बाद इसे अधिक समय तक न रखें।

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