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जूट में लगने वाले विभिन्न रोगों पर ऐसे करें नियंत्रण
जूट में लगने वाले विभिन्न रोगों पर ऐसे करें नियंत्रण
जूट को पटसन के नाम से भी जाना जाता है। हमारे देश में रेशे वाली फसलों में कपास के बाद सबसे अधिक जूट की खेती की जाती है। विश्व में भारत को जूट के उत्पादन में पहला स्थान प्राप्त है। किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा होता है। लेकिन कई बार कुछ रोगों के कारण जूट की पैदावार एवं गुणवत्ता में कमी आ जाती है। अगर आप भी कर रहे हैं जूट की खेती तो फसल को विभिन्न रोगों से बचाना आवश्यक है। आइए जूट की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर नियंत्रण की जानकारी प्राप्त करें।
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तना सड़न रोग : जूट की फसल में तना सड़न रोग का प्रकोप अधिक होता है। रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं। पौधों का तना सड़ने लगता है और कुछ समय बाद पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। इस रोग से बचने के लिए खेत में जल जमाव न होने दें। रोपाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
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मूल विगलन रोग : इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें गलने लगती हैं। इस रोग पर सही समय पर नियंत्रण नहीं करने पर पौधों के विकास में बाधा आती है और पौधा सूखने लगता है। इस रोग से बचने के लिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। खड़ी फसल में रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
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