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जून महीने में इस तरह करें कपास की देखभाल, होगी अच्छी पैदावार
जून महीने में इस तरह करें कपास की देखभाल, होगी अच्छी पैदावार
नकदी फसल होने के कारण कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है। इसकी खेती सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। कपास की बुवाई अप्रैल से मई के पहले सप्ताह तक की जाती है। इसके बाद समय-समय पर फसल को उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। आइए जून महीने में कपास की फसल की देखभाल से जुड़ी जानकारियों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
जून महीने में कपास की फसल में किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कार्य
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इस समय कपास की फसल में खरपतवारों की समस्या अधिक होती है।
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खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें।
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बीटी कपास की फसल में पौधों से पौधों की दूरी अधिक होती है। दूरी अधिक होने के कारण खेत में खाली जगह भी अधिक होता है। फलस्वरुप खरपतवारों की समस्या भी बढ़ जाती है।
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खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें।
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बुवाई के 50 से 60 दिनों बाद फसल में सिंचाई करें।
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सिंचाई के बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें।
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कपास की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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यदि आप रेतीली मिट्टी में इसकी खेती कर रहे हैं तो प्रतिदिन सिंचाई करने की जगह 4 से 5 दिनों के अंतराल पर फवारा विधि से सिचाई करें।
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सिंचाई के समय पानी की बचत के लिए एकांतर विधि अपनाएं। इस विधि में एक कतार छोड़कर सिंचाई की जाती है।
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वर्षा ऋतु में बारिश के बाद फसल में उचित मात्रा में यूरिया का प्रयोग करें।
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इस समय पौधों में रोग एवं कीटों के प्रकोप की संभावना भी बढ़ जाती है। रोग एवं कीटों के प्रकोप से बचने के लिए कुछ समय के अंतराल पर खेत में निरीक्षण करें।
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पौधों में उकठा रोग होने पर पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधे मुरझाने लगते हैं। उकठा रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 25 ग्राम देहात फुल स्टॉप मिला कर छिड़काव करें।
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