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जोड़ो के दर्द में रामबाण है यह औषधी, खेती से होगा तगड़ा मुनाफा
जोड़ो के दर्द में रामबाण है यह औषधी, खेती से होगा तगड़ा मुनाफा
भारत में मानसून सीजन कई प्रकार की औषधीय पौधों की खेती के लिए एक अनुरूप सीजन माना जाता है। जिनमें कलिहारी बेल वाली औषधीय फसल भी शामिल है। पौधे की गांठ, पत्तियां, जड़ें और बीज जैसे लगभग सभी भाग औषधीय निर्माण में प्रयोग किए जाते हैं। कलिहारी के पौधों की लम्बाई 3.5 से 6 मीटर और पत्तियां 8 इंच तक लंबी होती है। साथ ही पौधों में लगने वाले फलों की लम्बाई करीब 2 इंच तक होती है। जोड़ो से संबंधित जड़ी-बूटी और टॉनिक में कलिहारी का प्रयोग एक प्राथमिक औषधी के रूप में किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं की कम्पनियों में कलिहारी की मांग हमेशा रहती है। वहीं अच्छा भाव मिलने पर किसान इसकी खेती करके खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
कलिहारी के औषधीय फायदे
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किसी भी प्रकार का घाव या कीट के काटने पर होने वाले घावों को कलिहारी के लेप से आसानी से ठीक किया जा सकता है।
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जोड़ो और गुर्दे से संबंधित समस्याओं के लिए कलिहारी का प्रयोग फायदेमंद होता है।
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सांप के काटने जैसी स्थिति में भी जहर को पूरे शरीर में फैलने से रोकने के लिए कलिहारी एक असरदार औषधि है।
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इसके अलावा सिर दर्द, दांत दर्द या उन पर कीड़े लग जाने जैसी अवस्था में कलिहारी का लेप लगाया जा सकता है।
कलिहारी की खेती के लिए उपयुक्त समय
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इसकी खेती के लिए मध्य जून से अगस्त तक का समय सर्वोत्तम है।
बीज की मात्रा
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कलिहारी की खेती पिछली फसल की गांठों की रोपाई के द्वारा की जाती है।
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इसके अलावा बीज की रोपाई के द्वारा पनीरी तैयार करके भी इसकी खेती की जाती है।
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प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 10 से 12 क्विंटल गांठों की आवश्यकता होती है।
उपयुक्त मिट्टी
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इसकी खेती के लिए दोमट रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त है।
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लाल दोमट मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है।
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मिट्टी का पी.एच. स्तर 5.5 से 7 होना चाहिए।
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कठोर मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें।
खेत तैयार करने की विधि एवं गांठों की रोपाई
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खेत तैयार करते समय सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें।
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इसके बाद 2 से 3 बार रोटावेटर से हल्की जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
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जुताई के बाद खेत में पाटा अवश्य लगाएं। इससे मिट्टी समतल हो जाएगी।
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गांठों की रोपाई पंक्तियों में करें।
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सभी पंक्तियों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
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पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
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गांठों की रोपाई 6 से 8 सेंटीमीटर की गहराई में करें।
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