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जलवायु में परिवर्तन का फसलों पर असर
जलवायु में परिवर्तन का फसलों पर असर
जलवायु में परिवर्तन का सभी क्षेत्रों में असर हो रहा है। कृषि क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। जलवायु में परिवर्तन होने के कारण खेती की जाने वाली फसलों पर बहुत प्रभाव हो रहा है। इन फसलों में धान, गेहूं, मक्का, सरसों, आलू, ज्वार, कपास, नारियल, आदि फसलें शामिल हैं।
कृषि मंत्रालय के रिपोर्ट्स के अनुसार तापमान में प्रति डिग्री वृद्धि होने पर गेहूं के उत्पादन में 6,000 किलोग्राम तक कमी आ सकती है। धान के उत्पादन में भी 4 से 6 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। हालांकि धान की खेती पर विशेष ध्यान दिया जाए तो तापमान में वृद्धि होने पर इसके उत्पादन में 17 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी संभव है। भविष्य की बात करें तो वर्ष 2050 तक मक्के के उत्पादन में 18 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। आलू के उत्पादन में भी 6 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। जलवायु में परिवर्तन कुछ फसलों के लिए फायदेमंद भी है। वर्ष 2030 से 2028 तक सोयाबीन के उत्पादन में 13 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में नारियल के उत्पादन में भी वृद्धि हो सकती है।
जलवायु में परिवर्तन होने का असर केवल फसलों की पैदावार तक ही सीमित नहीं है। इससे फसलों की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर हो रहा है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने के कारण फसलों में प्रोटीन, जिंक, आयरन, आदि पोषक तत्वों की मात्रा में कमी हो सकती है।
बात करें जलवायु में परिवर्तन होने के कारणों की तो इसमें पराली का जलना सबसे मुख्य कारण है। रिपोर्ट्स में दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर वर्ष 550 से 620 मीट्रिक टन पराली का उत्पादन होता है। जिसका 15.9 प्रतिशत भाग जला दिया जाता है। जलने वाली पराली के कुल भाग का 40 प्रतिशत हिस्सा धान का, 22 प्रतिशत गेहूं एवं 20 प्रतिशत गन्ने का होता है। पराली जलाने के कारण डाईऑक्साइड, मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस निकलती है। पराली जलने से निकलने वाली यह गैस ग्लोबल वार्मिंग का कारण है।
कीटनाशकों का प्रयोग भी पर्यावरण के बहुत हानिकारक है। कीटनाशकों में कई हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं जिससे मृदा प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण होता है। इन समस्याओं से बचने के लिए जैविक खेती की पद्धति को अपनाना लाभदायक सिद्ध होगा।
जैविक खेती के कई लाभ
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जैविक उर्वरकों में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन पाया जाता है। इसलिए किसानों को नाइट्रोजन युक्त उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे में उर्वरकों पर होने वाले खर्च में भी कमी आती है।
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मिट्टी की जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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फसलों की गुणवत्ता बेहतर होती है।
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हमारे स्वस्थ्य पर भी बुरा असर नहीं पड़ता है।
जलवायु में परिवर्तन का फसलों की पैदावार एवं गुणवत्ता में होने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए हमे जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।
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