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विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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जिमीकंद में फफूंद जनित रोगों से होने वाले नुकसान पर ऐसे पाएं नियंत्रण

जिमीकंद में फफूंद जनित रोगों से होने वाले नुकसान पर ऐसे पाएं नियंत्रण

जिमीकंद एक औषधीय फसल है। भारत में इसको सुरन या ओल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खेती तमिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक सहित भारत के कई राज्यों में की जाती है। फसल से उत्पादन लेने के लिए इसकी उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। अक्सर इस फसल में कई रोगों और बिमारियों का प्रकोप देखने को मिलता है। इनमें से एक है -फफूंद जनित रोग। इन रोगों से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके लिए समय से देखभाल की आवश्यकता होती है। ताकि फसल को फफूंद जनित रोग से बचाया जा सकें और अधिक उत्पादन प्राप्त हो सकें। अगर आप भी जिमीकंद की फसल उगा रहे हैं और इसको फफूंद जनित रोगों से बचाना चाहते हैं। तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको फफूंद जनित रोग के लक्ष्ण एवं बचाव का बता रहे हैं। जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल-

जिमीकंद में होने वाले फफूंद जनित रोग

झुलसा रोग

तना गलन रोग

झुलसा रोग के लक्ष्ण एवं बचाव के तरीके

  • यह एक फफूंद जनित रोग है।

  • इस रोग का प्रकोप पौधों की पत्तियों पर होता है। इससे पत्तियों पर छोटे-छोटे वृताकार हल्के-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं।

  • कुछ समय बाद ये धब्बे सूखकर काले पड़ जाते हैं और पत्तियाँ सूखकर झुलस जाती है।

  • इस रोग के प्रकोप से कंदों की वृद्धि नहीं हो पाती है।

  • इस रोग का प्रकोप सितम्बर-अक्टूबर महीने में अधिक देखने को मिलता है।

  • इस रोग से बचाव हेतु इस रोग का लक्षण दिखने पर बावीस्टीन अथवा इंडोफिल एम 45 की 600 से 800 ग्राम मात्र को 200 से 400 लिटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।

  • खेत में नमी होने पर हल्की मात्रा में सिंचाई करें।

तना गलन रोग के लक्ष्ण एवं बचाव के तरीके

  • यह एक मृदा जनित रोग है।

  • यह रोग खेत में पानी के जमा होने से भी होता है।

  • इस रोग से पौधा पीला पड़कर जमीन पर गिर जाता है।

  • एक ही खेत में लगातार ओल की खेती करने से भी यह रोग होता है।

  • इस रोग का प्रकोप अगस्त-सितम्बर महीने में अधिक होता है।

  • इसके रोकथाम हेतु उचित फसल चक्र अपनाएँ।

  • जल निकास की उचित व्यवस्था रखें।

  • रोकथाम हेतु 2 ग्राम कार्बेंडाजिम पाउडर को प्रति लीटर ताजा गोबर के गाढ़े घोल में मिलाकर कंद को उपचारित करें।

  • इस रोग के लक्ष्ण दिखाई देने पर कैप्टान दवा के 2% के घोल को 15 दिनों के अंतराल पर दो-तीन बार पौधे के आस-पास मिट्टी पर छिड़कें।

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आशा है कि यह जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें और अपने किसान मित्रों के साथ जानकारी साझा करें। जिससे अधिक से अधिक लोग इस जानकारी का लाभ उठा सकें और जिमीकंद को फफूंद जनित रोगों से बचा कर, फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इससे संबंधित यदि आपके कोई सवाल हैं तो आप हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। कृषि संबंधी अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।



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