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जौ
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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जौ की खेती

जौ की खेती

जौ की खेती रबी मौसम में की जाती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू और कश्मीर में इसकी प्रमुखता से खेती की जाती है। भारत में हर वर्ष लगभग 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है। रेशा (फाइबर) से भरपूर जौ मुख्य रूप से पशुओं के आहार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। जौ की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, खेत की तैयारी, खाद एवं उर्वरक की मात्रा, सिंचाई, आदि कई जानकारियों के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़ें।

मिट्टी एवं जलवायु

  • इसकी खेती बलुई, बलुई दोमट, क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में की जा सकती है।

  • जौ की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।

  • समशीतोष्ण जलवायु में खेती करने पर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकेंगे।

  • बुवाई के समय तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

  • आमतौर पर असिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है।

बीज की मात्रा

  • समय पर बुवाई करने पर प्रति एकड़ खेत में 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

  • यदि आप देर से बुवाई कर रहे हैं तो बीज की मात्रा 15 से 20 प्रतिशत बढ़ा दें।

खेत की तैयारी एवं उर्वरक की मात्रा

  • खेत को खरपतवार से मुक्त करने के लिए 1 बार गहरी जुताई करें।

  • इसके बाद 3 से 4 बार हल्की जुताई करें।

  • खेत तैयार करते समय 7 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिलाएं

  • जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी एवं समतल हो जाएगी।

  • खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें।

  • सिंचित क्षेत्रों में 24 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 किलोग्राम फास्फोरस और 12 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।

  • सिंचित क्षेत्रों में खेत तैयार करते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा के साथ फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा समान रूप से मिलाएं। बचे हुए नाइट्रोजन का प्रयोग पहली सिंचाई के साथ करें।

  • वहीं असिंचित क्षेत्रों में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 किलोग्राम फास्फोरस और 12 किलोग्राम पोटाश खेत तैयार करते समय खेत में मिलाएं।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

  • जौ की फसल को कुल 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

  • पौधों की जड़ो के विकास के समय यानी बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद पहली सिंचाई करें।

  • बुवाई के 40 से 45 दिनों बाद दूसरी सिंचाई करें।

  • पौधों में फूल आने के समय तीसरी सिंचाई करनी चाहिए।

  • दानों में दूध बनने के समय चौथी सिंचाई करें।

  • खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें।

कटाई एवं पैदावार

  • बालियां पक कर पीली या भूरी होने लगे तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए।

  • कटाई में देर होने पर बालियां गिरने लगती हैं।

  • कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सूखा लें और दानों को अलग करें।

  • प्रति एकड़ भूमि से 14 से 20 क्विंटल दाने प्राप्त किए जा सकते हैं।

  • प्रति एकड़ खेत से करीब 20 से 30 क्विंटल भूसे प्राप्त होते हैं।

यह भी पढ़ें :

  • हरी खाद की खेती से किस तरह खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ा सकते हैं यह जानने के लिए यहां क्लिक करें।

इस पोस्ट में बताई गई बातों को ध्यान में रख कर जौ की खेती करने पर इसकी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकेंगे। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे बेझिझक कमेंट के के माध्यम से पूछें।

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