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कृषि
डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
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जाने क्या है टिम्बर एवं भारत में कितने प्रकार के टिम्बर की होती है खेती?

जाने क्या है टिम्बर एवं भारत में कितने प्रकार के टिम्बर की होती है खेती?

किसी वृक्ष के तने एवं शाखाओं से प्राप्त होने वाली लकड़ी को टिम्बर यानी इमारती लकड़ी कहते हैं। टिम्बर का प्रयोग इमारत (लकड़ी का घर), दरवाजे एवं खिड़कियां, पहिए, कुआं के चक्के एवं कई सजावटी वस्तुओं को तैयार करने में किया जाता है। टिम्बर की खेती करने वाले किसान कुछ वर्षों में ही लाखों की कमाई कर सकते हैं। आइए टिम्बर की खेती से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां प्राप्त करें।

भारत में कितने प्रकार की टिम्बर की होती है खेती?

हमारे देश में टिम्बर यानी इमारती लकड़ी प्राप्त करने के लिए कई वृक्षों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। जिनमें शीशम, सागवान, देवदार, चीड़, आम, नीम, साखू, महुआ, गूलर, बबूल, कटहल, चंदन, केदार, नारियल, बरगद, बांस, अर्जुन, आदि कई वृक्षों की खेती की जाती है।

कुछ प्रमुख टिम्बर की खेती से जुड़ी जानकारियां

  • शीशम : इसे इंडियन रोजवुड भी कहा जाता है। यह वृक्ष 4 डिग्री सेंटीग्रेड से 45 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान सहन कर सकता है। प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 70 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। फरवरी-मार्च महीने में इस की नर्सरी तैयार की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में अप्रैल-मई महीने में पौधों की रोपाई की जाती है। वहीं असिंचित क्षेत्रों में जून-जुलाई महीने में पौधों की रोपाई की जाती है। मुख्य खेत में 30 सेंटीमीटर चौड़े एवं 30 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे तैयार करके नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की रोपाई की जाती है। सभी गड्ढों के बीच 3 मीटर की दूरी रखें।

  • चंदन : चंदन की खेती काली मिट्टी, लाल चिकनी मिट्टी एवं बलुई मिट्टी में करनी चाहिए। प्रति एकड़ भूमि में 435 पौधे लगाए जा सकते हैं। मई से अक्टूबर महीने तक का समय पौधों की रोपाई के लिए उपयुक्त है। खेत में 45 सेंटीमीटर चौड़े एवं  45 सेंटीमीटर गहरे गड्ढों में पौधों की रोपाई करें। पौधों से पौधों के बीच 10 फीट की दूरी होनी चाहिए।

  • बांस : इसकी खेती उचित जल निकासी वाली लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। पौधों के अच्छे विकास के लिए भारी मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें। पारंपरिक तरीके से इसकी खेती बीज के द्वारा की जाती है। इसके अलावा जड़ों की कटाई, कलम के द्वारा एवं शाखाओं की कटिंग लगा करके भी इसकी खेती की जाती है।

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