पोस्ट विवरण
सुने
औषधीय पौधे
कल्पना
कृषि विशेषयज्ञ
2 year
Follow

इस तरह करें मुलेठी की खेती, होगी बेहतर पैदावार

इस तरह करें मुलेठी की खेती, होगी बेहतर पैदावार

मुलेठी को विभिन्न क्षेत्रों में मुलहठी, यष्टिमधु, मधुयष्टि, अमितमधुरम, जष्ठीमधु, आदि कई नामों से जाना जाता है। कई औषधीय गुणों के कारण इससे आयुर्वेदिक एवं एलोपैथिक दवाइयां तैयार की जाती हैं। इसके साथ ही इसका उपयोग कई सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण मुलेठी की मांग में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। इसकी खेती किसानों के लिए निश्चित ही मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। आइए मुलेठी की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।

मुलेठी के पौधों की पहचान

  • मुलेठी के पौधे झाड़ियों की तरह नजर आते हैं।

  • पौधों में गुलाबी एवं जामुनी रंग के फूल आते हैं।

  • इसके फल लंबे और चपटे होते हैं।

  • इसके मूल जड़ से कई छोटी-छोटी जुड़े निकलती हैं।

इसकी खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु

  • मुलेठी की खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।

  • बेहतर पैदावार के लिए इसकी खेती उपजाऊ एवं कार्बनिक पदार्थों से भरपूर रेतीली मिट्टी में करनी चाहिए।

  • मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 8.2 के बीच होना चाहिए।

  • इसकी खेती उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु में की जा सकती।

  • पौधों के विकास के लिए गर्मी का मौसम उपयुक्त है।

बीज की मात्रा एवं बीज का चयन

  • प्रति एकड़ भूमि में खेती के लिए मुलेठी की 100 से 125 किलोग्राम जड़ों की आवश्यकता होती है।

  • रोपाई के लिए करीब 7 से 9 इंच के लंबाई वाली जड़ों का चयन करें।

  • जड़ों में करीब 3 से 4 आंखें होनी चाहिए।

खेत तैयार करने की विधि

  • सबसे पहले खेत में मिट्टी पलटने वाली हल से 1 बार गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार एवं फसलों के अवशेष नष्ट हो जाएंगे।

  • इसके बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर के द्वारा तिरछी जुताई करें।

  • आखिरी जुताई से पहले प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं।

  • जुताई के बाद खेत में पानी चला कर पलेवा करें।

  • पलेवा के बाद भूमि की ऊपरी परत हल्की सूखने पर खेत में 1 बार जुताई करें और पाटा लगाएं। इससे मिट्टी भुरभुरी एवं समतल हो जाएगी।

  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

रोपाई की विधि

  • जड़ों की रोपाई कतार में करनी चाहिए।

  • सभी कतारों के बीच 90 सेंटीमीटर की दूरी रखें।

  • पौधों के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

  • रोपाई के समय जड़ों का 3 हिस्सा भूमि के अंदर एवं 1 हिस्सा भूमि की सतह के ऊपर होना चाहिए।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

  • जड़ों की रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।

  • पौधों के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर सिंचाई करें।

  • पौधों के अंकुरित होने के बाद ठंड के मौसम में महीने में 1 बार सिंचाई करनी चाहिए।

  • गर्मी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

  • वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

  • खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करें।

पौधों की खुदाई

  • रोपाई के 3 वर्ष बाद पौधे खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

  • करीब 2 से 2.5 फीट गहरी खुदाई करें।

  • खुदाई के बाद जड़ों को अच्छी तरह साफ करके तेज धूप में कुछ दिनों तक सुखाएं।

फसल की पैदावार

  • प्रति एकड़ खेत में खेती करने पर करीब 30 से 35 क्विंटल तक जड़ों की पैदावार होती है।

यह भी पढ़ें :

हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो हमारे पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अन्य किसान मित्र भी मुलेठी की खेती कर के अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। पशुपालन एवं कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।

12 Likes
Like
Comment
Share
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ