भारत में उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में मुलेठी की खेती की जाती है। मुलेठी एक ठंडी तासीर वाला औषधीय पौधा है। जिसकी जड़ें स्वाद में मीठी होती है। मुलेठी में एंटीबायोटिक, एंटी-ऑक्सीडेंट, प्रोटीन और वसा के गुण पाए जाते हैं। जिसके कारण खराश, जलन, खांसी, मलेरिया और अस्थमा जैसी बीमारियों में इसका सेवन लाभदायक माना जाता है। मुलेठी के पौधे लगभग तीन सालों में उपज देने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं। इसकी जड़ों को धूप में सूखाकर पाउडर या साबुत जड़ों के रूप में बेचा जाता है। अगर आप भी मुलेठी की खेती कर अधिक आय कमाना चाहते हैं, तो खेती के लिए उपयुक्त समय, जलवायु और मिट्टी से संबंधित जानकारी यहां देखें।
मुलेठी की खेती का उचित समय
गर्मी के मौसम में रोपाई के लिए उचित समय फरवरी और मार्च का होता है।
बरसात के मौसम में रोपाई अगस्त के महीने में करें।
मुलेठी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मुलेठी की खेती उष्ण और समशीतोष्ण दोनों ही तरह की जलवायु में की जा सकती है।
मुलेठी के पौधों का विकास गर्म जलवायु में बेहतर रूप में होता है।
गर्मी में रोपाई करने के लिए सिंचित क्षेत्र का चयन करें।
मुलेठी के पौधों को प्रति वर्ष 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है।
बेहतर बीज अंकुरण के लिए 18 से 20 डिग्री तापमान उचित होता है।
अधिक गर्मी और अधिक सर्दी जैसे मौसम पौधे सहन नहीं कर पाते हैं।
मुलेठी के बीज की मात्रा एवं बीज उपचार
इसकी खेती जड़ों या तने की रोपाई के द्वारा की जाती है।
प्रति एकड़ भूमि में खेती के लिए 100 से 120 किलोग्राम तने के भागों की आवश्यकता होती है।
रोपाई के लिए 15 से 20 सेंटीमीटर लम्बे जड़ या तने का प्रयोग करें।
रोपाई के लिए 2 से 3 आंखों वाले तने का हो प्रयोग करें।
जड़ों या तने को रोपाई से पूर्व गौमूत्र से उपचारित किया जाना चाहिए।
जड़ों या तने की रोपाई का तरीका
जड़ों या तने की रोपाई मेड़ या पंक्तियों में की जा सकती है।
पंक्तियों में जड़ों या तने की रोपाई के लिए 2 फीट और मेड़ में रोपाई के लिए 1.5 फीट की दूरी रखें।
मेड़ की आपस में दूरी 3 फीट रखें।
जड़ों की रोपाई 6 से 7 सेंटीमीटर गहरी करें।
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