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इलायची खेती की पूरी जानकारी, ऐसे करेंगे खेती तो होगा मुनाफा
इलायची का परिचय
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इलायची एक छोटा हरे रंग का मसाला होता है। जिसके अंदर काले रंग के छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं।
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इलायची का प्रयोग विभिन्न प्रकार के भोजन में खुशबू और स्वाद को जोड़ने के लिए किया जाता है।
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इलायची एक औषधीय पौधे के रूप में भी जाना जाता है, जो कई प्रकार की बीमारियों में शरीर के लिए फायदेमंद माना गया है।
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भारत में इलायची को मसालों की रानी के रूप में भी जाना जाता है।
इलायची के औषधीय गुण
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इलायची एक सुगंधित मसाला होता है।
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इलायची कब्ज जैसी बीमारी के लिए एक असरदार औषधि मानी जाती है।
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इलायची मानसिक तनाव को दूर करती है।
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मुंह में घाव या छाले होने पर भी इलायची का सेवन लाभकारी माना गया है।
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इसके अलावा खांसी, बवासीर, पथरी, खुजली, तथा हृदय रोग जैसे लक्षणों में भी इलायची का सेवन फायदेमंद बताया गया है।
इलायची की खेती का समय
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इलायची की नर्सरी के लिए बीज की बुवाई अप्रैल से मई माह के पहले सप्ताह तक होती है।
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पौधों की लम्बाई लगभग 1 फुट होने पर पौधे रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार होते हैं।
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पौधों की रोपाई का उचित समय जुलाई माह का होता है।
खेती के लिए उचित जलवायु एवं मिट्टी
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बेहतर पैदावार के लिए इलायची की खेती काली मिट्टी या दोमट मिट्टी में करनी चाहिए।
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फसल की वृद्धि के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उचित होती है।
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इलायची की खेती के लिए उचित तापमान 10 डिग्री से 35 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।
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1500 से 4000 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इलायची के पौधे बेहतर रूप से विकास करते हैं।
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भूमि का पीएच मान 4.5 से 7.02 तक होना चाहिए।
रोपाई का सही तरीका
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पौधों की रोपाई के लिए छायादार क्षेत्र का चुनाव करें।
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पौधों को खेत में गड्ढे या मेड बनाकर लगाएं।
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मेड़ की मेड़ से दूरी डेढ़ से दो फिट रखें।
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पौधे से पौधे की दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर रखें।
खेत की तैयारी
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खेत को साफ कर खेत की गहरी जुताई करें।
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खेत में पानी के संरक्षण के लिए खेत के चारों ओर मेड बना दें।
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खेत में फिर से गहरी जुताई कर रोटावेटर चला दें और मिट्टी को समतल कर लें।
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इलायची के पौधे की बेहतर वृद्धि के लिए प्रत्येक पौधे को लगभग 10 किलो गोबर की खाद की आवश्यकता होता है।
सिंचाई प्रबंधन
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इलायची की खेती में ड्रिप सिंचाई विधि का प्रयोग करना चाहिए।
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खेत में 50 प्रतिशत तक नमी बनी रहनी चाहिए।
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वर्षा के मौसम में आवश्यकतानुसार ही खेत की सिंचाई करें।
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गर्मियों में हफ्ते में 2 से 3 बार सिंचाई करें।
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सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
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