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हरी खाद से बढ़ाएं खेत की उर्वरक शक्ति
हरी खाद से बढ़ाएं खेत की उर्वरक शक्ति
कृषि में हरी खाद का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इन दिनों रासायनिक उर्वरक और विभिन्न कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता दिन - प्रतिदिन घटती ही जा रही है। ऐसे में हरी खाद का प्रयोग किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है। इस पोस्ट के माध्यम से आप हरी खाद की अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हरी खाद क्या है?
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हरी खाद ऐसी सहायक फसलों को कहते हैं जिनकी खेती मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के लिए की जाती है।
हरी खाद के लाभ
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हरी खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता और पोषक तत्वों में बढ़ोतरी होती है।
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इसके प्रयोग से से उत्पादकता बढ़ती है और मिट्टी को किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता है।
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खेत में हरी खाद के प्रयोग से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज, लोहा आदि तत्वों की भी पूर्ति होती है।
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इसके प्रयोग से खरपतवार में भी कमी होती है।
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इससे सुक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ावा मिलती है।
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मिट्टी की जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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इसके प्रयोग से मिट्टी नरम होती है जिससे मुख्य फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है।
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मिट्टी से होने वाले रोगों के होने की संभावना कम हो जाती है।
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किसानों को हरी खाद की खेती में कम लागत और इसके प्रयोग से अधिक फायदा होता है।
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रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के प्रयोग के बिना भी उच्च गुणवत्ता वाली फसलों की प्राप्ति होती है।
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भूमि प्रदुषण कम होता है।
हरी खाद की खेती कब करें?
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इसकी खेती रबी, खरीफ और जायद सभी मौसम में की जा सकती है।
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यदि आप खरीफ मौसम में हरी खाद की खेती करना चाहते हैं तो रबी फसलों की कटाई के बाद और खरीफ फसलों की बुवाई से पहले इसकी खेती करें।
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वहीं अगर आप रबी मौसम में इसकी खेती करना चाहते हैं तो खरीफ फसलों की कटाई के बाद जब खेत खाली हो तब इसकी खेती करें।
हरी खाद वाली फसलें
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खरीफ मौसम की फसलें : नेपियर घास, लोबिया, मूंग, उड़द, सनई, ग्वार, ज्वार, ढेंचा, मक्का, बाजरा, कुल्थी
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रबी मौसम की फसलें : बरसीम, सैंजी, मटर, चना, जौ, सरसों, मसूर, रिजका, नेपियर घास
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जायद मौसम की फसलें : सनई, ढेंचा, नेपियर घास, मूंग, उड़द, ज्वार
कैसे करें प्रयोग
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हरी खाद के लिए खेती की गई फसलों को हरी अवस्था में ही फसलों में फूल और फल आने से पहले मिट्टी में दबा दिया जाता है।
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आप मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो की सहायता से फसलों को मिट्टी में मिला सकते हैं।
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खेत की जुताई के समय इस बात का ध्यान रखें कि जुताई उसी दिशा में हो जिस दिशा में पौधों को गिराया गया है।
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इसके बाद खेत में 8 से 10 दिनों तक 4 - 5 सेंटीमीटर पानी भर दें। इससे पौधों के अपघटन में ज्यादा समय नहीं लगता है।
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