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हल्दी के प्रकार और फसल में लगने वाले कीट - रोगों से बचाव
Author : Soumya Priyam
हल्दी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। मसाले के तौर पर इसका सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। इसके अलावा हल्दी का उपयोग दवाइयों और सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है। हल्दी कई किस्मों की होती है। जिनमे कस्तुरी , केसरी, रश्मि, सुदर्शना, अमलापुरम, पीतांबरा, सोनाली, सी.एल. 326 माइडुकुर, सी.एल. 327 ठेकुरपेन्ट आदि प्रमुख हैं।
हल्दी में लगने वाले कीट
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कंद मक्खी : यह मक्खियां हल्दी के विकसित होने के समय उसे खा कर बरबाद कर देती हैं। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 किलो फोरट 10 जी के दानों का प्रयोग कर के इनसे निजात पाया जा सकता है।
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तना भेदक : इस कीट से हल्दी की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसका नियंत्रण 0.05 प्रतिशत डाइमिथोएट या फास्फोमिडान का छिड़काव करने से किया जा सकता है।
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बारुथ : इस तरह के कीट पत्तियों को नष्ट कर के फसल को खराब कर देते हैं। एक लीटर पानी में 2 मिलीलीटर डाईमेथोएट या मिथाएल डेमेटॉन को मिला कर छिड़काव कर के इन पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इस पर नियंत्रण के लिए 21 दिन के अंतराल पर 0.1 प्रतिशत मेलिथियोन का छिड़काव करना चाहिए।
हल्दी में लगने वाले रोग
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कंद सड़न : इस रोग के होने पर पौधों के ऊपरी भागों पर धब्बे हो जाते हैं और कुछ दिन बाद पौधे सूख जाते हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रभावित क्षेत्रों की खुदाई कर बौर्डियोक्स मिश्रण या डाईथेन एम - 45 डालना चाहिए।
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पर्णचित्ती रोग : इस रोग में पत्तों पर धब्बे दिखने लगने हैं। इस रोग के होने पर हल्दी की पैदावार पर बहुत प्रभाव होता है। इस रोग से बचने के लिए 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार डाईथेन एम - 45 के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
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2 September 2020
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