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कृषि यंत्र
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
2 year
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हैप्पी सीडर : पराली प्रबंधन के साथ गेहूं की बुवाई होगी आसान, जानें इसके फायदे

हैप्पी सीडर : पराली प्रबंधन के साथ गेहूं की बुवाई होगी आसान, जानें इसके फायदे

बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए हमारे देश में पराली यानी धान की फसल के अवशेष को जलाने की सख्त मनाही है। ऐसे में धान की कटाई के बाद मक्के की बुआई करना किसानों के लिए किसी बड़ी परेशानी से कम नहीं है। धान की पराली को हटाने के लिए किसान को काफी मेहनत करनी पड़ती है। कई बार पराली प्रबंधन के कारण गेहूं की बुवाई में भी देर हो जाती है। ऐसे में गेहूं की खेती करने वाले किसानों के लिए हैप्पी सीडर कृषि यंत्र एक बेहतर विकल्प है। यदि आप अभी तक हैप्पी सीडर कृषि यंत्र इसे अवगत नहीं है तो इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम हैप्पी सीडर की विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

क्या है हैप्पी सीडर?

  • हैप्पी सीडर रोटर एवं जीरो टिलेज ड्रिल का मिश्रण है।

  • इस कृषि यंत्र के द्वारा पराली को खेत से बिना निकाले या जलाए गेहूं की सीधी बुवाई की जा सकती है।

कैसे काम करता है हैप्पी सीडर?

  • हैप्पी सीडर यंत्र में आगे की तरफ रोटावेटर यूनिट लगा होता है जो धान की पराली को मिट्टी में दबाने के साथ खेत में क्यारियां तैयार करता है।

  • इसके साथ ही इसमें जीरो टिलेज मशीन लगी है जिससे खेत की बिना जुताई किए ही गेहूं की बुवाई की जा सकती है।

  • इस यंत्र में दो बॉक्स बने होते हैं जिनमें खाद एवं बीज अलग-अलग भरा जाता है।

  • इसे ट्रैक्टर के साथ चलाया जाता है।

हैप्पी सीडर इस्तेमाल करने के फायदे

  • हैप्पी सीडर कृषि यंत्र के द्वारा 1 दिन में करीब 6 से 8 एकड़ खेत में बुवाई की जा सकती है।

  • इस यंत्र के द्वारा कम खर्च में आसानी से गेहूं की बुवाई की जा सकती है।

  • पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।

  • इस विधि से बुआई करने पर खेत में खरपतवार की समस्या कम होती है।

  • मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है।

  • हैप्पी सीडर यंत्र से जीरो टिलेज विधि से बुवाई करने पर सिंचाई के समय पानी की भी बचत होती है।

  • खेत की जुताई में होने वाले खर्च में कमी आती है।

  • हम अपनी आवश्यकता के अनुसार बीच की गहराई को घटाया बढ़ा सकते हैं।

  • समय की बचत के साथ मेहनत भी कम लगता है।

  • कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार हैप्पी सीडर मशीन से बुआई करने पर प्रति एकड़ खेत में करीब 5,000 रुपए की बचत होती है।

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