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कृषि विशेषयज्ञ
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गरमा धान में पत्ती लपेटक कीट से होने वाले नुकसान एवं बचाव के उपाय

गरमा धान में पत्ती लपेटक कीट से होने वाले नुकसान एवं बचाव के उपाय

गरमा धान की पत्तियों में बदलते मौसम के साथ लपेटक कीट का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। इस कीट का लार्वा हल्के हरे एवं पीले रंग का होता है जिसके शरीर पर धारियां बनी हुई होती है। इसके साथ ही व्यस्क कीट के शरीर पर सुनहरे पीले रंग के पंख होते हैं। धान में फसल बढ़ने के साथ-साथ पौधों में कीट का प्रकोप भी बढ़ने लगता है। जिससे बचने के लिए समय रहते इसका समाधान करना और भी जरूरी हो जाता है। अगर आप भी गरमा धान में लग रहे पत्ती लपेटक कीट से परेशान हैं तो इस आर्टिकल से उचित रोकथाम और बचाव के उपाय जान सकते हैं।

गरमा धान में पत्ती लपेटक कीट से होने वाले नुकसान

  • यह पत्तों को अंदर से खा कर उनका हरा पदार्थ चूस लेते हैं। जिससे पौधे भोजन नहीं बना पाते हैं और कमजोर हो कर मर जाते हैं।

  • इस कीट से पत्तों के ऊपर सफेद रंग की धारियां पड़ जाती हैं।

  • पत्ती लपेट कीट फसल में 20 से 30 प्रतिशत तक के उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।

गरमा धान में पत्ती लपेटक कीट से रोकथाम और बचाव

  • नियमित रूप से पौधों में कीट का जायजा लेते रहें। पौधों में कीट का असर दिखने पर उसको जल्द से जल्द पत्तों से झाड़ दें।

  • रीजेंट कीटनाशक का छिड़काव 7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से करें। ध्यान रखें कि छिड़काव के तुरंत बाद हुई बारिश से कीटनाशक का प्रभाव खत्म हो जाता है।

  • धान की फसल में यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से बचें। यह पौधों में कच्चेपन को बढ़ाकर पत्ती लपेट कीट के प्रभाव को बढ़ा देता है।

  • कीट के नियंत्रण के लिए 250 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस दवा का प्रति एकड़ में छिड़काव करें।

  • कीट का ज्यादा असर होने पर तो मैलाथियान दवा का स्प्रे करें।

यह भी देखेंः

ऊपर दी गयी जानकारी पर अपने विचार और कृषि संबंधित सवाल आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर भेज सकते हैं। यदि आपको आज के पोस्ट में दी गई जानकारी उपयोगी लगे, तो इसे लाइक करें और अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें। साथ ही कृषि संबंधित ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।

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