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मूँगफली
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती से जुड़ी कुछ बारीकियां

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती से जुड़ी कुछ बारीकियां

मूंगफली के दानों में 45-50 प्रतिशत तेल की मात्रा के साथ 28-30 प्रतिशत प्रोटीन एवं 21-25 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट होता है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी, विटामिन सी, कैल्शियम, जिंक, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम, आदि पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। यह बहुउपयोगी फसलों में से एक है। इसके दानों को खाने के अलावा इससे कई व्यंजन तैयार किए जाते हैं। इसकी खेती दानों के अलावा तेल प्राप्त करने के लिए भी की जाती है। दानों से तेल निकालने के बाद इसकी खली का उपयोग पशुओं के आहार के लिए किया जाता है। पशुओं के लिए पौष्टिक चारे के अलावा इसे कार्बनिक खाद की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। मूंगफली की खेती के बाद बुवाई की जाने वाली फसलों में नाइट्रोजन की आवश्यकता भी कम होती है। बात करें मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त समय की तो इसकी खेती खरीफ के साथ गर्मी के मौसम में भी की जा सकती है। अगर आप भी करना चाहते हैं ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती तो इससे जुड़ी जानकारियां यहां से प्राप्त करें।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई के फायदे

  • वर्षा के मौसम में खरपतवारों के साथ कीट एवं रोगों का खतरा भी अधिक होता है। वहीं गर्मी में मौसम में मूंगफली की खेती करने से विभिन्न खरपतवार, कीट एवं रोगों के प्रकोप की संभावना काफी कम हो जाती है।

मूंगफली की बुवाई के लिए उपयुक्त समय

  • ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई 15 मई से की जा सकती है।

  • खरीफ मौसम में खेती के लिए इसकी बुवाई जून से अक्टूबर महीने तक की जा सकती है।

  • जायद मौसम में खेती करने के लिए मूंगफली की बुवाई जनवरी के आखिरी सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह तक की जाती है।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती के खेत तैयार करने की विधि

  • मूंगफली का फैलाव भूमि के अंदर होता है। जड़ों के विकास के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। इसलिए खेत तैयार करते समय 1 बार 12 से 15 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें।

  • गहरी जुताई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जुताई 15 सेंटीमीटर से अधिक गहरी न हो। बहुत अधिक गहरी जुताई करने पर फलियां भी अधिक गहराई में बनेंगी। जिससे खुदाई के समय कठिनाई हो सकती है।

  • इसके बाद 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से हल्की जुताई करें।

  • अच्छी पैदावार के लिए जुताई के समय प्रति एकड़ भूमि में 4 टन गोबर की खाद मिलाएं।

  • इसके अलावा प्रति एकड़ जमीन में 17.2 किलोग्राम यूरिया, 150 किलोग्राम सुपर फास्फेट एवं 13.2 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश मिलाएं।

  • सल्फर की पूर्ति के लिए खेत की आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 80 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करें।

बीज उपचारित करने की विधि

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम 75 % डब्लू.एस. से उपचारित करें।

  • इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम से भी उपचारित कर सकते हैं।

  • फसल को दीमक एवं सफेद लट जैसे भूमिगत कीटों से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 10 से 15 मिलीग्राम क्लोरपायरीफ़ॉस 20 ई.सी. से उपचारित करें।

  • कीटनाशक से बीज उपचारित करने के 5-6 घंटे बाद बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।

  • राइजोबियम कल्चर से उपचारित बीज को 2-3 घंटे छांव में सूखाने के बाद बुवाई करें।

बुवाई की विधि

  • बीज की बुवाई क्यारियों में करें। इससे खरपतवार नियंत्रण एवं सिंचाई में आसानी होती है।

  • सभी क्यारियों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें।

  • पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें।

  • बीज की बुवाई 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई में करें।

  • बुवाई के बाद दानों को मिट्टी से ढक दें।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

  • ग्रीष्मकालीन मूंगफली की फसल में पर्याप्त मात्रा में नमी होना बहुत जरूरी है। नमी की कमी होने पर मूंगफली के जमाव में कठिनाई होती है।

  • सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव न हो।

  • खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए पलेवा देकर बुवाई करें।

  • अंकुरण के बाद पहली सिंचाई करें।

  • पौधों में फूल निकलने के समय दूसरी सिंचाई करें।

  • बुवाई के 45-50 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई करें।

  • फलियों में दाने बनते समय चौथी सिंचाई करें।

  • खुदाई से एक सप्ताह पहले आखिरी सिंचाई करें।

  • निराई-गुड़ाई के लिए खुरपी या हैंड हो का प्रयोग कर सकते हैं।

  • बुवाई के 40-45 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ाएं।

मूंगफली की खुदाई

  • मूंगफली की पुरानी पत्तियां पीली हो कर झड़ने लगे तब खुदाई कर लेनी चाहिए।

  • खुदाई के बाद पौधों के छोटे भागों में बांध कर धूप में सूखाएं।

  • सूखाने के बाद फलियों को पौधों से अलग करें।

  • फलियों को तेज धूप में सूखाने से बचें। तेज धूप में सूखाने से दानों की अंकुरण क्षमता में कमी आती है।

हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसान मित्र इस जानकारी का लाभ उठाते हुए ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।

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