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गोभी की फसल में क्लबरूट रोग का लक्षण एवं बचाव
गोभी की फसल में क्लबरूट रोग का लक्षण एवं बचाव
क्लब रूट फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकोली, शलजम, मूली आदि में पाए जाने वाले प्रमुख रोगों में से एक है। यदि आप गोभी की खेती करते हैं तो अपनी फसल को इस रोग से बचाने के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
रोग का कारण
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यह मृदा जनित रोग है।
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यह रोग गर्म, नमी युक्त अम्लीय मिट्टी में सबसे अधिक होता है।
रोग का लक्षण
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इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
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पौधों की जड़ों का आकार मोटा हो जाता है एवं उसमें गांठे बन जाती हैं।
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पौधों का विकास रुक जाता है।
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नए पौधे सूखने लगते हैं।
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पुराने पौधों में कटाई योग्य फसल नहीं निकलती है।
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रोग बढ़ने पर जड़ों का रंग काला हो जाता है और जड़ें सड़ जाती हैं।
बचाव के उपाय
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इस रोग से बचने के लिए रोग रहित प्रमाणित बीज का चयन करें।
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जिस खेत में क्लब रूट रोग का प्रकोप दिखाई दे वहां गोभी की खेती न करें।
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यदि किसी खेत में इस रोग से प्रभावित फसलों का अवशेष डाला गया है तो वहां गोभी की खेती करने से बचें।
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जिस खेत में इस रोग का प्रकोप देखा गया है वहां 5 से 7 वर्षों तक गोभी वर्गीय फसलों की खेती नहीं करनी चाहिए।
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खेती के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को साफ रखें।
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खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है।
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मिट्टी की पी.एच स्तर की जांच कराएं।
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यह रोग करीब 5.7 से 7 पी.एच स्तर की मिट्टी में अधिक पाया जाता है।
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इससे बचने के लिए मिट्टी का पी.एच स्तर 7.3 से 7.5 रखें।
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पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम स्यूडोमोनस से उपचारित करें।
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खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
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रोग से संक्रमित क्षेत्रों में 3 वर्ष के लिए फसल चक्र अपनायें।
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