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गन्ने पर दिख रहे हैं काले चूर्ण के धब्बे, पकने पर बढ़ रही है फटने की समस्या
गन्ने पर दिख रहे हैं काले चूर्ण के धब्बे, पकने पर बढ़ रही है फटने की समस्या
मानसून का सीजन अपने साथ तेज हवाओं और उमस भरे मौसम को भी लेकर आता है। ऐसे हालात में अक्सर खेत में जमा पानी और अधिक नमी से गन्ने के पौधों पर पनपने वाले कीट/कवक से होने वाली परेशानियां किसानों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन जाती है। मौसम की ये स्थितियां गन्ने की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक व्हिप स्मट के लिए अनुकूल देखी गयी है, जिसे सामान्य भाषा में कंडुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है।
धान,गन्ने जैसी मुख्य फसलों को प्रभावित करने वाला कंडुआ रोग एक प्रकार का कवक जनित रोग है और खेत में पौधों के बौने रह जाने, झाड़ीदार दिखने और तनों के फटने जैसे लक्षणों से पहचाना जा सकता है। गन्ने की फसल में यह रोग पत्तियों के आवश्यकता से अधिक फैलाव, पत्तियों में नुकीलापन और पोरियों के पतले व लम्बे होने का कारण बनता है। जिसके कारण पत्तियां चाबुक के आकार की दिखने लगती हैं और कल्ले पाइप नुमा आकार के हो जाते हैं। इसके अलावा कवक का काला चूर्ण भी कल्लो के ऊपर देखा जा सकता है और तनों के परिपक्व होने पर तनों के फटने जैसी समस्या से किसानों को जूझना पड़ता है।
कंडुआ रोग के बीजाणु हवा एवं पानी के द्वारा प्रसारित होकर सह फसलों को भी संक्रमित कर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा गुड़ की खराब गुणवत्ता और उत्पाद एवं मंडी भाव में भारी गिरावट के साथ फसल में 30 से 70 % तक की माल हानि, रोग को गंभीरता से लेने और शुरुआती लक्षण दिखने पर ही रोकथाम के उपाय अपनाने की ओर संकेत करते हैं।
रोकथाम के उपाय
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खेत में संक्रमित पौधों को खेत से हटाकर नष्ट कर दें।
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फटे हुए तनों को भी सावधानीपूर्वक उखाड़ कर जला दें।
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रोग के बीजाणुओं को हवा में न फैलने दें।
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रोग से बचाव के लिए एडऑक्सी स्टोबिन 18.2 % और डेफिनोकोनजोल 11.4 % एस सी की उचित मात्रा का छिड़काव संक्रमित पौधों पर करने से भी रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
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