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गल रहे हैं मटर के छोटे पौधे, हो सकता है इस रोग का प्रकोप
Author : Soumya Priyam

मटर के पराठे, वेज पुलाव, मटर पनीर, जैसे कई ऐसे व्यंजन हैं जो मटर के बिना अधूरे हैं। लाजवाब स्वाद के साथ यह सेहत का खजाना भी है। मटर इस कदर पसंद की जा रही है कि अब हर मौसम में इसकी मांग होने लगी है। मटर की खेती भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। मटर की खेती से अधिक पैदावार एवं भरपूर मुनाफा प्राप्त करने के लिए अक्टूबर-नवंबर महीने में इसकी अगेती बुवाई करना लाभदायक होता है। जहां तक बात रही तापमान की तो बीज के अंकुरण के लिए औसत 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। बीज के अंकुरण के समय या मटर के पौधे जब छोटी अवस्था में होते हैं तब 'गलका रोग' होने की सम्भावन अधिक होती है। इस रोग को 'डैम्पिंग ऑफ' या 'गलन रोग' के नाम से भी जाना जाता है।
गलका रोग का कारण
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मिट्टी में लम्बे समय तक नमी बनी रहने से कई तरह के फफूंद पनपने लगते हैं। यह फफूंद पौधों के तने एवं जड़ों को गला देते हैं।
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ठंड के मौसम में वातावरण में नमी बढ़ने पर यह रोग तेजी से फैलता है।
गलका रोग की कैसे करें पहचान?
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रोग के शुरुआती समय में पत्तियां पीली होने लगती हैं।
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रोग बढ़ने पर भूमि की सतह से सटे हुए तने गलने लगते हैं।
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कुछ समय बाद पौधे गल कर नष्ट हो जाते हैं।
गलका रोग पर कैसे करें नियंत्रण?
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बुवाई के लिए स्वस्थ बीज का चयन करें।
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मटर की बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा जैसे फफूंदनाशक से बीज उपचारित करें।
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फसल को इस रोग से बचाने के लिए 15 लीटर पानी में 30 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP मिला कर छिड़काव करें।
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इसके अलावा आप 15 लीटर पानी में 50 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP मिला कर भी छिड़काव कर सकते हैं।
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इस पोस्ट में बताई गई बातों को ध्यान में रख कर इन पर अमल करके आप गलका रोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं। इस रोग से जुड़ी अन्य जानकारी व इसके रोकथाम के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800 1036 110 पर कॉल करके कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं। पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
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1 December 2022
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