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डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
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गेंहू में रतुआ रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके

गेंहू में रतुआ रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके

रतुआ रोग कई तरह के होते हैं। गेहूं की फसल को इस रोग के कारण सर्वाधिक नुकसान होता है। यह रोग भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। गेंहू में पीला रतुआ रोग, भूरा रतुआ रोग और काला रतुआ रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके यहां से देखें। इस पोस्ट में बताई गई दवाओं का प्रयोग कर के आप गेहूं की फसल में रतुआ रोग पर आसानी से निजात पा सकते हैं।

  • पीला रतुआ रोग : पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। मिट्टी में भी पीले रंग के पाउडर के समान तत्व गिरने लगते हैं। कल्ले निकलने के समय पीला रतुआ रोग होने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं। इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैंकोज़ेब 75 डब्ल्यूपी मिलाकर छिड़काव करें।

  • भूरा रतुआ रोग : भूरा रतुआ रोग को ब्राउन रस्ट या पत्ती का रतुआ रोग भी भी कहा जाता है। यह रोग देश के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों में शुरुआत में पत्तियों की ऊपरी सतह पर नारंगी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। कुछ समय बाद यह धब्बे गहरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस रोग के कारण गेहूं की पैदावार में 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ भूमि में 1.2 किलोग्राम डाईथेन एम 45 का छिड़काव करें।

  • काला रतुआ रोग : काला रतुआ रोग को ब्लैक रस्ट या तने का रतुआ रोग भी कहते हैं। शुरुआत में इस रोग के होने पर पौधों के तने एवं पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का रंग काला होने लगता है। 20 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान होने पर यह रोग तेजी से फैलता है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए 0.1 प्रतिशत टेबुकोनाजोले 250 ई.सी का छिड़काव करें।

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