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“एर्विनिया रॉट” से फसल उत्पादन में भारी कमी, जानिए इसके नियंत्रण के उपाय

“एर्विनिया रॉट” से फसल उत्पादन में भारी कमी, जानिए इसके नियंत्रण के उपाय

भारत में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश प्रमुख केला उत्पादक राज्य है। एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्वों से भरपूर यह फल शरीर को ऊर्जावान बनाता है, साथ ही बाजार में हमेशा ही मांग में बने रहने के कारण किसानों के लिए यह एक फायदेमंद फसल होती है। परन्तु सेहत के लिए लाभदायक होने के साथ यह फल कई सारे रोगों व कीटों के प्रति संवेदनशील है, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को कम करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। केले के रोगों में प्रमुख “एर्विनिया रॉट” एक जीवाणु जनित रोग है जो मुख्यतः मिट्टी में जीवाणु या संक्रमित सिंचाई के द्वारा फैलता है। यह रोग छोटे पौधों पर आसानी से फैलता है और बड़े पौधों को सुखाकर फसल में नुकसान का एक बड़ा कारण बनता है।

रोग के लक्षण

  • जीवाणु पौधों के संक्रमित भाग में नरम सड़न  पैदा करते हैं। जिससे पौधे का वो भाग कोमल होकर कमजोर हो जाता है।

  • पौधों के शीर्ष पत्तों का रंग हल्का पड़ने लगता है।

  • मिट्टी के ऊपर तनों में सड़न के कारण भूरे धब्बे देखने को मिलते हैं। सड़े हुए भाग से बदबू आती है और पत्ते अचानक से सूखने लगते हैं।

  • संक्रमित छोटे पौधों को उखाडें तो वो आसानी से मिट्टी से बहार निकल जाते हैं और इनकी जड़ों में सड़न और कालापन देखने को मिलता है।

  • तनों में सड़न बढ़ने के कारण अंत में पौधे गिर जाते हैं।

रोग से बचाव

  • खेत में अच्छी सिंचाई प्रणाली का ध्यान रखें जिससे बीमारी को पनपने के लिए उचित जलवायु न मिले।

  • संक्रमित पौधों को तुरंत ही खेत से निकालकर नष्ट कर दें।

  • केले की फसल लेने के बाद खेत से पौधों के अवशेषों को हटा दें।

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केले में “एर्विनिया रॉट” रोग पर नियंत्रण एवं फसल प्रबंधन के लिए देहात टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 के माध्यम से कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर समय पर फसल का बचाव करें। साथ ही अपने नज़दीकी देहात केंद्र से जुड़कर उच्च गुणवत्ता के उर्वरक एवं कीटनाशक खरीद जैसी सुविधा पाएं।

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