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डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
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DWS-323 : गुणवत्ता से भरपूर गेंहू की बीज

DWS-323 : गुणवत्ता से भरपूर गेंहू की बीज

गेहूं की खेती विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में की जाती है। गेहूं के उत्पादन में भारत को दूसरा स्थान प्राप्त है। इसकी खेती मुख्यतः ठंडी एवं शुष्क जलवायु में की जाती है। गेहूं की खेती करने वाले सभी किसानों के सामने यह उलझन रहती है कि उच्च गुणवत्ता की फसल एवं अधिक पैदावार के लिए किस किस्म का चयन करें? आपकी इस उलझन को दूर करने के लिए इस पोस्ट के माध्यम से हम गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की विशेषताएं एवं अन्य जानकारियां साझा कर रहे हैं। यह किस्म है देहात DWS 323 गेहूं।

DWS 323 गेहूं की विशेषताएं

  • इस किस्म की बुवाई के लिए 25 अक्टूबर से 25 नवंबर तक का समय उपयुक्त है।

  • इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 95 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक होती है।

  • बुवाई के बाद फसल को तैयार होने में 135 से 140 दिनों का समय लगता है।

  • इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी बालियां सफेद होती हैं। साथ ही बालियां पूर्ण रूप से भरी हुई होती हैं।

  • बीज पहले से उपचारित होते हैं।

  • यह सिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त किस्मों में से एक है।

  • यह किस्म खाने में भी स्वादिष्ट होती है।

  • प्रति एकड़ जमीन से 27 से 28 क्विंटल फसल का उत्पादन होता है।

खेत की तैयारी

  • बुवाई से पहले खेत की 2 से 3 बार मिट्टी पलटने वाली हल से जुताई करें। इसके बाद खेत को समतल बना लें।

  • छोटे पौधों की सुरक्षा के लिए प्रति एकड़ खेत में 8 किलोग्राम फिप्रोनिल 0-3 प्रतिशत जीआर मिलाएं।

खाद एवं उर्वरक

  • अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ खेत में 45 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग करें।

  • फास्फोरस और पोटाश की मात्रा मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के आधार पर होनी चाहिए।

  • सामान्य तौर पर प्रति एकड़ खेत में 25 किलोग्राम फास्फोरस या पोटाश की मात्रा मिलाएं।

  • बीज की मात्रा एवं बुवाई की विधि

  • प्रति एकड़ जमीन में 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

  • यदि मध्य दिसंबर के बाद बुवाई करनी है तो बीज की मात्रा को बढ़ाकर 45 से 50 किलोग्राम करें।

  • करीब 20 से 22 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बुवाई करनी चाहिए।

  • इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में नमी की कमी ना हो। नमी की कमी से अंकुरण में समस्या आती है।

सिंचाई

  • बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली सिंचाई करें।

  • 40 से 45 दिनों बाद जब कल्ले फूटने लगे तब दूसरी सिंचाई करें।

  • बुवाई के 60 65 दिनों बाद यानी गांठे बनने के समय तीसरी सिंचाई करें।

  • बुवाई के करीब 80 90 दिनों बाद जब पौधों में फूल आने लगे तब चौथी सिंचाई करनी चाहिए।

  • बुवाई के करीब 100 से 105 दिनों बाद दानों में दूध आने लगते हैं। इस समय पांचवी सिंचाई करने से बेहतर फसल प्राप्त कर सकते हैं।

यदि आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी महत्वपूर्ण लगी है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसान इसका लाभ उठा सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।

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