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धान : फफूंद जनित रोगों पर इस तरह करें नियंत्रण
धान : फफूंद जनित रोगों पर इस तरह करें नियंत्रण
धान के पौधों में कई तरह के फफूंद जनित रोगों का प्रकोप होता है। जिनमें कंडवा रोग, भूरा धब्बा रोग, तना गलन रोग, झोंका रोग, पर्ण झुलसा रोग, आदि शामिल हैं। इन रोगों के प्रकोप से धान की पैदावार में 30 से 60 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। ऐसे में समय रहते धान की फसल को इन रोगों से बचाना आवश्यक है। अगर आप भी कर रहे हैं धान की खेती तो फसल को विभिन्न फफूंद जनित रोगों से बचाने के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
धान की फसल में होने वाले कुछ प्रमुख फफूंद जनित रोग
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कंडवा रोग : इस रोग को फॉल्स स्मट रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के होने पर प्रभावित पौधों में चावल के दाने पीले रंग के पिंड में बदल जाते हैं। कवक का विकास तेज होने पर स्मट बॉल फट कर नारंगी हो जाती है। कुछ समय बाद बालियां पीले-हरे या हरे-काले रंग की हो जाती है। इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज की 2 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत डब्लूपी से उपचारित करें। यह दवा बाजार में बाविस्टिन के नाम से उपलब्ध है।
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भूरा धब्बा रोग : इस रोग का प्रकोप फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीले या नारंगी-पीले रंग की हो जाती हैं। रोग बढ़ने पर यह धब्बे जंग की तरह भूरे नजर आने लगते हैं। पत्तों के ऊपरी हिस्से बदरंग होने लगते हैं, जो धीरे-धीरे पत्तों के निचले हिस्से तक फैल जाता है। पुष्पगुच्छे छोटे रह जाते हैं। अधिकतर पुष्पगुच्छे बांझ या आंशिक रूप से भरे हुए होते हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर हेक्सोनाज़ोल 4% + ज़ीनेब 68% डब्लूपी मिला कर छिड़काव करें। यह दवा बाजार में इंडोफिल अवतार के नाम से उपलब्ध है।
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झोंका रोग : इस रोग को ब्लास्ट रोग के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर मुख्य खेत में पौधों की रोपाई के करीब 30 से 40 दिनों बाद इस रोग का प्रकोप होता है। इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर मटमैले धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार में वृद्धि होती है और धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। इससे पत्तियां जली हुई सी नजर आती हैं। कुछ समय बाद पौधे कमजोर होकर टूटने लगते हैं। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें। खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ भूमि में 200 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
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तना गलन रोग : इस रोग का प्रकोप कल्ले निकलते समय अधिक होता है। इस रो के होने पर पौधों का तना सड़ने लगता है। पत्तों पर धूसर (भूरे) रंग के अनियमित आकार के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों के किनारे गहरे लाल या गहरे भूरे रंग के होते हैं। तना गलन रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर हेक्सोनाज़ोल 4% + ज़ीनेब 68% डब्लूपी मिला कर छिड़काव करें। यह दवा बाजार में इंडोफिल अवतार के नाम से उपलब्ध है।
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पर्ण झुलसा रोग : इस रोग से प्रभावित पौधों का निचला भाग सड़ने लगता है। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडरमा से उपचारित करें।
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धान की फसल में उर्वरक प्रबंधन की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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