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धान
डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
1 year
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धान में इन रोग एवं कीटों का नियंत्रण है जरूरी, पैदावार को कर सकते हैं कई गुना तक कम

आपको शायद यह जान कर हैरानी होगी कि विश्व में मक्का के बाद सबसे ज्यादा धान की खेती की जाती है। इसका मुख्य कारण है चावल की लगातार बढ़ती खपत। किसानों को अधिक मुनाफा देने वाली यह फसल भी कुछ रोग एवं कीटों के कारण बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। जिनमें बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट, शीथ ब्लाइट और पैडी ब्राउन प्लांट हॉपर भी शामिल है। धान की पैदावार को कम करने वाले रोगों के नाम तो आप जान गए, लेकिन क्या आप इनसे होने वाले नुकसान और रोकथाम के उपाय जानते हैं? अगर नहीं जानते तो घबराएं नहीं और इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

सबसे पहले बात करते हैं पौधों में कल्ले निकलने के समय होने वाले बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग की। इस रोग का प्रकोप पौधों में फूल आने तक हो सकता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों के किनारे पर सबसे पहले पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। समय बढ़ने के साथ यह धब्बे भी धीरे-धीरे पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। सुबह के समय पत्तियों को ध्यान से देखने पर पत्तियों की सतह पर सफेद या शहद की तरह पदार्थ नजर आते हैं। बात करें इस रोग पर नियंत्रण की तो प्रति एकड़ भूमि में 2.5 किलोग्राम कापऔक्सी क्लोराइड के साथ 250 ग्राम कसुगामायसिन मिला कर छिड़काव करें।

फफूंद जनित शीथ ब्लाइट रोग भी धान की पैदावार में कमी का एक बड़ा कारण है। इस रोग के होने पर प्रभावित पौधों की धान की डंठलों के नीचले हिस्सों पर हरे-भूरे रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं। कुछ दिनों बाद यह धब्बे नीले से स्लेटी रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस रोग पर नियंत्रण करते हुए धान की अधिक उपज सुनिश्चित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 मिली प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें। इसके अलावा आप एकड़ खेत में 500 ग्राम मैंकोजेब का भी प्रयोग कर सकते हैं।

कई बार आपने खेत में कुछ क्षेत्रों में धान के पौधों को सूखते देखा होगा। लेकिन क्या आपने इसके कारण पर गौर किया है? यह ‘भूरा फुदका कीट’ के कारण होता है। कभी-कभी यह जले हुए पौधों की तरह नजर आता है इसलिए इसे 'हापर बर्न' के नाम से भी जाना जाता है। अधिक मात्रा में यूरिया का प्रयोग करना भी इस समस्या का एक बड़ा कारण है। इसलिए आवश्यकता से अधिक यूरिया के प्रयोग से बचें। पौधों की जड़ों के पास पाए जाने वाले इस भूरे रंग के हॉपर पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ भूमि में बूप्रोफेज़िन 20 %  + ऐसीफेट 50 % w/w WP @ 400 ग्राम का छिड़काव करें।

अब तो आप धान की पैदावार को प्रभावित करने वाले कारणों से वाकिफ हो ही गए तो हम उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट में बताई गई दवाओं का प्रयोग कर आप इन समस्याओं से आसानी से छुटकारा भी पा सकते हैं। धान की खेती से जुड़ी अपनी समस्याएं बेझिझक कमेंट के माध्यम से पूछें। साथ ही इसे लाइक और शेयर करना भी न भूलें।

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