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धान की फसल में निमाटोड कीट के प्रभाव एवं बचाव के उपाय
धान की फसल में निमाटोड कीट के प्रभाव एवं बचाव के उपाय
निमाटोड कीट
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निमाटोड बहुत छोटे धागे नुमा संरचना वाले कीट होते हैं, जिन्हें खाली आंखों से देख पाना असंभव होता है।
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यह कीट जल और मिट्टी दोनों ही जगहों पर आसानी से पनप सकते हैं। 5 से 7 पीएच वाली मिट्टी निमाटोड की बढ़त के लिए सबसे अनुकूल देखी गयी है।
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ये एक प्रकार के परजीवी कीट हैं, जो सामान्य तौर पर पौधों के आसपास पाए जाते हैं और पौधों की जड़ो को खाकर उनसे रस चूस कर जीवित रहते हैं।
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निमाटोड कीट धान के अलावा मुख्य रूप से गेहूं, टमाटर, मिर्च, बैंगन, भिंडी, परवल और फलों में अनार, नींबू, संतरा, अमरूद, अंजीर, किन्नू,अंगूर समेत अन्य पौधों को भी प्रभावित करते हैं |
कीट के लक्षण और नुकसान
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पौधों में कीट के प्रकोप के लक्षण दूर से पौधों के गलने की तरह ही दिखाई देते हैं।
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यह कीट जड़ों से रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देता है। जिसके कारण पौधे मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं कर पाते हैं और उनकी बढ़वार रुक जाती है।
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प्रारम्भिक अवस्था में जड़ की छाल सफेद से पीली भूरी और बाद में काले रंग की हो जाती है।
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रोग ग्रस्त जड़ों पर अन्य कवक एवं जीवाणुओं का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे जड़ें सड़ जाती हैं और जड़ों में गांठे बन जाती हैं |
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यह कीट पौधों में गांठ रोग, पुट्टी रोग, नींबू का सूखा रोग, जड़ गलन रोग और जड़ फफोला जैसे रोगों के लिए भी उत्तरदायी होता है।
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कीट के कारण फसल के उत्पादन में 15 से 20 % तक की गिरावट आ सकती है।
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धान की फसल में फुटाव में कमी आ जाती हैं एवं कम कल्ले बनते हैं।
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पौधों में बौनापन दिखाई देने लगता है।
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बालियों में कम दाने भरते हैं।
नियंत्रण के उपाय
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बुवाई से पूर्व बीजों का उपचार धान में इस बीमारी के प्रकोप को काफी हद तक कम कर सकता है। इसके लिए 20 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1% डब्ल्यू पी का प्रयोग प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए करें।
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खेत की जुताई के समय 90 किलोग्राम नीम की खली का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से करें।
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रोपाई के 10 दिनों के बाद कार्बोफ्यूरान 400-500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
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फसल में लक्षण दिखाई देने पर निमाटोड के प्रकोप के अनुसार “पसिलोमिस लीलसिनस” जो की एक प्रकार का जैविक कीटनाशक है; 1 से 2 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से पूरी तरह से विघटित गोबर की खाद में मिलाकर शाम को खेत में छिड़काव करें ।
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