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धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर नियंत्रण के सटीक उपाय
Author : Soumya Priyam

अगर आप धान की खेती कर रहे हैं तो उच्च गुणवत्ता की फसल एवं अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए पौधों को विभिन्न रोगों से बचाना आवश्यक है। धान के पौधों में कई रोग फफूंद के कारण होते हैं और कुछ रोग पोषक तत्वों की कमी के कारण। आइए धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग
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खैरा रोग : खैरा रोग पौधों में जिंक की कमी होने के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार बढ़ने लगते हैं और धब्बे गहरे कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग के प्रभावित पौधों के विकास में बाधा आती है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ भूमि में 400 लीटर पानी में 2 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 1 किलोग्राम बुझा हुआ चूना मिला कर छिड़काव करें। इसके अलावा पौधों में जिंक की कमी पूरी करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 3 से 4 किलोग्राम देहात जैविक जिंक का प्रयोग करें।
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झोंका रोग : आमतौर पर मुख्य खेत में पौधों की रोपाई के करीब 30 से 40 दिनों बाद इस रोग का प्रकोप होता है। यह रोग फफूंद एवं मौसम में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर मटमैले धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार में वृद्धि होती है और धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। इससे पत्तियां जली हुई सी नजर आती हैं। कुछ समय बाद पौधे कमजोर होकर टूटने लगते हैं। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें। खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ भूमि में 200 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
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पर्ण झुलसा रोग : यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पौधों का निचला भाग सड़ने लगता है। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडरमा से उपचारित करें।
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धान की नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की रोपाई की सही जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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22 July 2021
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