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धान की फसल को तना सड़न रोग से बचाने के सटीक उपाय
धान की फसल को तना सड़न रोग से बचाने के सटीक उपाय
धान की फसल में होने वाले तना सड़न रोग को स्टेम रॉट के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों का तना सड़ने लगता है। तेजी से फैलने के कारण कुछ ही दिनों में पूरी खेत की फसल इस रोग की चपेट में आ सकती है। इस रोग के होने पर पैदावार में भारी कमी आती है। फलस्वरुप किसानों को मुनाफे की जगह नुकसान का सामना करना पड़ता है। आइए धान की फसल में होने वाले तना सड़न रोग का कारण, लक्षण एवं बचाव के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
तना सड़न रोग का कारण
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धान के पौधों में फफूंद का प्रकोप होने पर यह समस्या उत्पन्न होती है।
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यह फफूंद मिट्टी की ऊपरी परत एवं खरपतवारों पर लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
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सिंचाई के बाद पानी के साथ तैरते हुए यह स्वस्थ पौधों को भी प्रभावित करते हैं।
तना सड़न रोग के लक्षण
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इस रोग की शुरुआत में जल स्तर के पास पौधों में छोटे एवं अनियमित आकार के काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
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रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है।
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कुछ ही समय में संक्रमित पौधों का तना सड़ जाता है।
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संक्रमित पौधों की पत्तियां एवं तने भूमि पर गिरने के बाद इस रोग के फफूंद मिट्टी में चले जाते हैं और लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
तना सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके
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इस रोग से बचने के लिए तना सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
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रोग से प्रभावित पौधों के अवशेष को खेत में न रहने दें।
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संक्रमित पौधों के अवशेष को खेत से बाहर जलाकर नष्ट कर दें।
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पौधों को इस रोग से बचाने के लिए 10 लीटर पानी में 10 ग्राम बाविस्टिन और 2.5 ग्राम पोसामाइसिन या एग्रीमाइसीन मिलाकर घोल तैयार करें। इस मिश्रण में बीज को 24 घंटे तक डुबोकर उपचारित करें।
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इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम बाविस्टिन से भी उपचारित किया जा सकता है।
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खड़ी फसल में रोग के लक्षण नजर आने पर 15 लीटर पानी में 25 से 30 ग्राम देहात फुल स्टॉप मिलाकर छिड़काव करें।
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धान की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर नियंत्रण के सटीक उपाय यहां से देखें।
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