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धान की फसल को खैरा रोग से कैसे बचाएं ?
धान की फसल को खैरा रोग से कैसे बचाएं ?
धान की फसल में कई रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। इनमें से एक है - खैरा रोग। इस रोग के कारण पौधों की पत्तियाों में जंग जैसे धब्बे बन जाते हैं। इस कारण से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। इस रोग की जानकारी न होने पर किसान समय से इस पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। जिससे उनको आर्थिक नुकसान होता है। इसलिए समय रहते इसका नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। इसलिए आज इस आर्टिकल के माध्यम से किसानों को खैरा रोग का कारण, लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय बताएंगे। जिनको अपनाकर किसान फसल से अच्छी पैदावार ले सकें। जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल।
खैरा रोग का कारण एवं लक्षण
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यह रोग मिट्टी में जस्ते की कमी होने पर होता है।
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इस रोग में धान की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं।
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कुछ समय बाद धब्बे कत्थई या जंग जैसे रंग के हो जाते हैं।
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इससे पत्तियां सूखने लगती हैं।
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इस रोग से पौधा बौना रह जाता है।
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अधिक प्रकोप होने पर पौधों की जड़े भी कत्थई जैसे रंग की हो जाती है।
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इस रोग से पौधों में कल्ले कम निकलते हैं।
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इस रोग से पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिलती है।
खैरा रोग पर नियंत्रण के उपाय
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इसकी रोकथाम के लिए प्रति एकड़ 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का इस्तेमाल आखिरी बुआई के समय मिट्टी में करें।
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इसके अलावा पौधों में जिंक की कमी पूरी करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 5 किलोग्राम देहात के जिंक सलफेट मोनोहाइड्रेट का इस्तेमाल करें।
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इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 5 किलोग्राम देहात के जिंक सलफेट मोनोहाइड्रेट का छिड़काव करें।
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आवश्यकता पड़ने पर 7 से 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।
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आशा है कि यह जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें और अपने किसान मित्रों के साथ जानकारी साझा करें। जिससे अधिक से अधिक लोग इस जानकारी का लाभ उठा सकें और धान की फसल में खैरा रोग पर नियंत्रण कर, फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इससे संबंधित यदि आपके कोई सवाल हैं तो आप हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। कृषि संबंधी अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
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