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धान की फसल को बर्बाद कर सकता है वार्म कीट, शुरुआती चरण में ऐसे करें नियंत्रण
भारत में धान की खेती प्राथमिक फसल के रूप में की जाती है। धान एक लंबी अवधि की फसल है, जिसके प्रारंभिक वनस्पति चरण में केसवॉर्म कीट का प्रकोप फसल में एक गंभीर क्षति का कारण बन सकता है। कीट की ख़ास बात यह कि ये बेहद कम जनसंख्या में होने के बावजूद फसल में तीव्र नुकसान का कारण बन जाता है। यह पूर्वी भारत के निचले इलाकों और जलभराव वाले क्षेत्रों में एक प्रमुख कीट है। हालांकि इसकी कम जनसंख्या और आसपास कीट के लार्वा और अंडे न मौजूद होने से इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
कीट की पहचान
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कीट के अंडे हल्के पीले, डिस्क जैसे, पत्तियों की निचली सतह पर एकल या गुच्छों में पाए जाते हैं।
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लार्वा हल्के भूरे-नारंगी सिर के साथ हल्के हरे रंग का होता है।
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व्यस्क एक छोटा नाजुक पतंगा होता है जिसमें सफेद पंखों के साथ हल्के भूरे रंग के निशान होते हैं।
कीट के लक्षण
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कैटरपिलर हरी पत्तियों पर भोजन करते हैं, जिससे पत्तियां सफेद कागज की तरह दिखने लगती हैं।।
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पत्तियों पर सीढ़ीनुमा आकृति दिखाई देती है। साथ ही पत्तियों के ऊपरी सिरे पर कैंची से कटे समकोण आकृति बनने लगती है।
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यदि पत्तियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो लार्वा पानी की सतह पर गिर जाते हैं। खड़े पानी वाले खेतों में कीट का प्रकोप अधिक पाया जाता है।
नियंत्रण के उपाय
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खेत में जलजमाव की स्थिति को नियंत्रित करें।
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फसल का जल्दी रोपण भी खेत में कीट के पनपने की संभावना को कम करता है।
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कीट की शुरुआती अवस्था में नियंत्रण के लिए फसल की निगरानी करते रहें।
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खेत में खरपतवार न उगने दें।
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नाइट्रोजन की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। साथ ही कई भागों में विभाजित कर ही नाइट्रोजन युक्त उर्वरक को फसल में डालें।
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खेत के पानी में बहुत ही कम मात्रा में मिट्टी तेल मिलाकर पौधों को एक छोर से दूसरी छोर तक रस्सियों की मदद से हिलाएं। ऐसा करने से कीट पानी में गिर जाएंगे और पानी में उपस्थित तेल में मर जाएंगे।
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ऊपर बताए गए उपाय विफल होने पर कीटनाशक का प्रयोग करें ।
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