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धान की नर्सरी में लगने वाले रोग एवं उपचार
धान की नर्सरी में लगने वाले रोग एवं उपचार
सामान्यतः धान की संकर बीज की बुवाई के बाद नर्सरी को तैयार होने में 21 दिन लगते हैं। वहीं धान की अन्य किस्मों की नर्सरी करीब 25 दिनों में तैयार हो जाती है। इस समय स्वस्थ पौधे प्राप्त करने के लिए छोटे पौधों को विभिन्न रोगों से बचाना आवश्यक है। आइए धान की नर्सरी में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
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पर्ण झुलसा रोग : यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के लक्षण धान की नर्सरी में ही नजर आने लगते हैं। प्रभावित पौधों का निचला भाग सड़ने लगता है। नर्सरी के अलावा मुख्य क्षेत्र में कल्ले निकलने के समय इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है। समय यदि इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो 50 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए धान की नर्सरी में खरपतवारों पर नियंत्रण करें। नर्सरी में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडरमा से उपचारित करें। इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस से भी उपचारित कर सकते हैं।
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झोंका रोग : आमतौर पर धान की रोपाई के करीब 30 से 40 दिनों बाद इस रोग का प्रकोप होता है। लेकिन इस रोग के लक्षण नर्सरी में ही नजर आने लगते हैं। यह रोग फफूंद एवं मौसम में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर मटमैले धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार में वृद्धि होती है और धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। इससे पत्तियां जली हुई सी नजर आती हैं। कुछ समय बाद पौधे कमजोर होकर टूटने लगते हैं। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग रहित बीज का चयन करें। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें। खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ भूमि में 200 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें। इसके साथ ही फसल की कटाई के बाद प्रभावित पौधों के अवशेष को नष्ट कर दें।
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धान की नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण के बेहतरीन तरीके यहां से प्राप्त करें।
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