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विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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डाऊनी मिल्ड्यु रोग कद्दू वर्गीय फसल को कर रहा प्रभावित, नियंत्रण के लिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

डाऊनी मिल्ड्यु रोग कद्दू वर्गीय फसल को कर रहा प्रभावित, नियंत्रण के लिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

जल्दी तैयार होने एवं बाजार में मांग अधिक होने के कारण कुकुरबिट्स की खेती प्रमुखता से की जाती है। कुकुरबिट्स नाम सुन कर कहीं आप सोच में तो नहीं पड़ गए? यह कोई नई फसल नहीं है, यह वही फसल है जिसकी खेती किसान सदियों से करते आ रहे हैं। सामान्य भाषा में हम इसे कद्दू वर्गीय फसल के नाम से जानते हैं। इनमें कद्दू, लौकी, तुरई, करेला, पेठा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज एवं चप्पन कद्दू (जुकिनी) सभी शामिल हैं। इन सभी की खेती विभिन्न मौसम एवं जलवायु में की जाती है। अन्य सभी फसलों की तरह इन फसलों में भी कई तरह के रोग एवं कीट अपना घर बना लेते हैं। जिससे फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। कद्दू वर्गीय फसलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाले रोगों में डाऊनी मिल्ड्यु रोग का नाम भी आता है।

सबसे पहले जानते हैं क्या है डाऊनी मिल्ड्यु रोग? यह एक फफूंद जनित रोग है। नर्सरी या खेत में लगे छोटे पौधे इस रोग की चपेट में जल्दी आते हैं। शुरुआत में इस रोग से प्रभावित पौधों की पूरानी पत्तियों की निचली सतह पर हरे से पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों का कोई निश्चित आकार नहीं होता। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार में वृद्धि होती है और इनका रंग भूरा होने लगता है। केवल इतना ही नहीं, यह धब्बे फैलते हुए पत्तियों की ऊपरी सतह पर भी नजर आने लगता है। धब्बों वाले स्थान पर पत्तियों के ऊतक भूरे हो कर सूख जाते हैं।

इस तरह रोग की पहचान तो कर ली हमने, लेकिन इस पर नियंत्रण का क्या? घबराएं नहीं, हमारे कृषि विशेषज्ञों ने डाऊनी मिल्ड्यु रोग पर नियंत्रण के तरीके भी बताए हैं।

कैसे करें डाऊनी मिल्ड्यु रोग पर नियंत्रण?

  • इस रोग से फसल को बचाने के लिए पौधों के बीच की दूरी का ध्यान रखें। पौधों के बीच की दूरी कम होने पर इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है।

  • खरपतवारों पर फफूंदों के पनपने का खतरा अधिक होता है। इसलिए नर्सरी एवं खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण करें।

  • इस रोग के फफूंद मिट्टी में लम्बे समय तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए गर्मी के मौसम में 1 बार गहरी जुताई कर के खेत को कुछ दिनों तक खुला रहने दें।

  • फसल चक्र अपनाएं। खेत में कम से कम 2 से 3 वर्षों का फसल अन्तराल रखें।

  • रोग के शुरूआती लक्षण नजर आते ही प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला कर नष्ट कर दें।

  • रासायनिक विधि से इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ भूमि में जिनेब 75% डब्लूपी को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से मिला कर छिड़काव करें।

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कद्दूवर्गीय फसलों की खेती से जुड़े अपने सवाल बेझिझक हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। आप हमारे टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क कर के कृषि विशेषज्ञों से परामर्श भी ले सकते हैं। इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।

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