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दालचीनी में लगने वाले प्रमुख रोग और रोगों से बचाव

दालचीनी में लगने वाले प्रमुख रोग और रोगों से बचाव

दालचीनी एक सुगंधित औषधी एवं मसाला है, जो दक्षिण भारत के जंगलों में बड़ी मात्रा में पाया जाता है। 10 से 15 मीटर ऊंचे होने पर पेड़ों को काट लिया जाता है और पेड़ की छाल को एकत्रित कर बाजार में बेचा जाता है। दालचीनी के बीजों को नर्सरी में पॉलिथीन में तैयार किया जाता है। दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है और पौधों को बोने के बाद उन्हें नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है। दालचीनी में रोगों की बात की जाए तो सामान्यतः पत्तियों पर सर्वाधिक रोग देखने को मिलते हैं। रोगों की पहचान और उनका प्रारंभिक नियंत्रण न होना फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर प्रभाव डालता है। दालचीनी में लगने वाले रोग और रोगों के नियंत्रण की विस्तृत जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।

दालचीनी में लगने वाले रोग/कीट और उनका नियंत्रण

  • पत्र दाग: इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे होने लगते हैं, जो बाद में बड़े होकर पत्तियों में छेद और तने तक फैल कर पौधों के सूखने का कारण बनते हैं। इस रोग पर नियंत्रण के लिए संक्रमित भाग की कटाई और 1% बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव करें।

  • लीफ माइनर: इस रोग के लगने का अधिक खतरा नर्सरी में होती है। कीट का वयस्क और लार्वा दोनों ही पत्तियों को अपना भोजन बनाते हैं। जिसके कारण पत्तियों पर छाले पड़ जाते हैं और वह सूखने लगती है। कीट के नियंत्रण के लिए नई पत्तियों के निकलने पर 0.05% क्विनलफॉस का छिड़काव करें।

  • भूरी अगंमारी: यह रोग पिस्टल लोटिया पालमर द्वारा होता है। यह पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे छोड़ता है, जो बाद में भूरे रंग के किनारों के साथ मध्य में स्लेटी रंग के हो जाते हैं। रोग के नियंत्रण के लिए 1% बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव करें।

  • दालचीनी तितली: यह रोग बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता है। यह कीट नई कोमल पत्तियों को खाकर पौधों को खाली कर देता है। कीट की पहचान सफेद धब्बों और काले भूरे रंग के पंखों से की जा सकती है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए नई विकसित पत्तियों पर 0.05% क्विनलफॉस का छिड़काव करें।

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