भारत में दालचीनी की खेती केरल एवं तमिलनाडु में की जाती है। दालचीनी एक सदाबहार फसल है। जिसका प्रयोग मसाले और औषधि के रूप में होता है। इसकी फसल वृक्ष की शुष्क छाल के रूप में प्राप्त होती है। साथ ही इसकी पत्तियों का उपयोग तेजपत्ता की तरह भी किया जाता है। दालचीनी भूरे रंग की सुगंध से भरपूर मुलायम, और चिकनी होती है, जो भोजन में एक स्वाद जोड़ने के साथ विकार, दांत, सिरदर्द, चर्म रोग, भूख न लगने और मासिक धर्म से जुड़ी परेशानियों में राहत देने का काम करती है। इतने गुणों के कारण प्रत्येक मौसम में दालचीनी की मांग बनी हुई होती है। जिसके कारण इसकी खेती किसानों के लिए अधिक लाभ देने वाली फसल मानी गई है। दालचीनी की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
दालचीनी की खेती के लिए उचित समय
दालचीनी के पौधों का रोपण जून-जुलाई में करें।
जलवायु और भूमि
दालचीनी उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है।
गर्म और आर्द्र जलवायु पौधे के विकास के लिए बेहतर होती है।
पौधों को 200 से 250 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की जरूरत होती है।
रेतीली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उचित होती है।
खेती के लिए जल निकासी युक्त भूमि का चयन करें।
खेत की तैयारी
भूमि को अच्छे से साफ करके 50 सेंटीमीटर लंबाई और चौड़ाई के गड्ढे तैयार करें।
गड्ढों के बीच की दूरी 3 मीटर रखें।
पौधों को जून-जुलाई में लगाएं।
अगस्त-सितंबर में पौधों की गुड़ाई करें।
उर्वरक प्रबंधन
गड्ढों को भरते समय प्रत्येक गड्ढे में 20 किलोग्राम गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाएं।
पहले साल में प्रति पेड़ 40 ग्राम यूरिया, 115 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 45 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें।
गर्मी के मौसम में 25 किलोग्राम हरी पत्तियों से झपनी तथा 25 किलोग्राम एफवाईएम खाद डालें।
हर साल उर्वरक की मात्रा को इसी क्रम में बढ़ाते रहें।
उर्वरक मई-जून और सितंबर से अक्टूबर के महीने में डालें।
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