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चुकंदर की फसल में जड़ गांठ सूत्रकृमि की समस्या और रोकथाम के उचित उपाय

चुकंदर की फसल में जड़ गांठ सूत्रकृमि की समस्या और रोकथाम के उचित उपाय

चुकंदर की खेती एक जड़ वाली सब्जी है। इसकी खेती ठंडी जलवायु में की जाती है। चुकंदर में फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी एवं आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका इस्तेमाल मुख्यत: सलाद के रूप में किया जाता है। वहीं इसके हरे वानस्पतिक भाग का उपयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। इसकी खेती कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब एवं राजस्थान में की जाती है। लेकिन कई बार फसल में जड़ गांठ सूत्रकृमि की समस्या देखने को मिलती है। यह समस्या जड़ से संबंधित होती है। कई बार जानकारी के अभाव में किसान समय से इस पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। जिससे फसल को नुकसान होता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से किसानों को जड़ गांठ सूत्रकृमि की समस्या के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय बताएंगे। जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल।

जड़ गांठ सूत्रकृमि समस्या का कारण एवं लक्षण

  • इस समस्या को क्रेजी रूट के नाम से भी जाना जाता है।

  • सूत्रकृमि से पौधे की जड़ छोटी हो जाती है और मुख्य जड़ पर छोटी-छोटी अन्य पार्श्व जड़ों का प्रसार हो जाता है।

  • इसका संक्रमण अधिक तापमान एवं नम मिट्टी में अधिक होता हैं।

  • इस समस्या के कारण जड़ का रूप दाढ़ी जैसा हो जाता है।

  • पौधे को उखाड़ कर देखने पर जड़ सीधी न होकर एक गुच्छे जैसी दिखाई देती हैं।

  • मिट्टी में रहकर यह नई जड़ों को भेद कर उनके अंदर घुस जाती है तथा पानी और खाना ले जाने वाली कोशिकाओं पर आक्रमण करती हैं।

  • इसके बाद यह सूत्रकृमी गोलाकार होकर जड़ों में गांठे पैदा कर देती हैं।

  • जड़ों में गांठे बनकर फूल जाती हैं।

  • इससे संक्रमित पौधों की जड़ें मिट्टी से उचित पोषण एवं पानी नहीं ले पाती हैं।

  • इससे पौधे बौने रह जाते हैं।

  • फलों का आकार छोटा रह जाता है एवं गुणवत्ता कम हो जाती है।

  • रोगग्रस्त पत्तियों में पीलेपन की शिकायत देखने को मिलती है।

  • कुछ समय बाद पत्तियां सिकुड़ कर मुरझा जाती है।

  • पौधे में फल फूल देरी से लगते हैं।

  • फसल का विकास रुक जाता है।

  • इससे पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिलती है।

जड़ गांठ समस्या से बचाव के उपाय

  • रोग प्रतिरोधी /बीएनवाईवीवी सहिष्णु, एफ1 संकर किस्मों की खेती करें।

  • संक्रमित मिट्टी में फसल की बुआई न करें।

  • रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।

  • बुआई से पहले मिट्टी को उपचारित करें।

  • एक खेत से दूसरे खेतों में कृषि औजारों का प्रयोग करने से पहले इनको अच्छी तरह से साफ कर लें।

  • खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करते रहें।

  • बुआई के 20 से 25 दिन पहले प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 क्विंटल नीम खली का इस्तेमाल करें।

  • बुआई से पहले बीजों को करीब 3 ग्राम बैविस्टिन फफूंदनाशक को पानी में मिला कर 1 किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें।

  • इसके अलावा बीजों को उपचारित करने के लिए 10 लीटर पानी में 10 ग्राम बॉविस्टीन और 2.5 ग्राम पोसामाइसिन या 2.5 ग्राम एग्रीमाइसीन या 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लीन मिला कर घोल बना लें।

  • अब इस घोल में स्वस्थ बीजों को 24 घंटे के लिए डाल कर उपचारित करें।

  • फसल की बुआई के समय मिट्टी का तापमान ठंडा होने पर ही बुआई करें।

  • खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था रखें।

  • उचित फसल चक्र अपनाएं।

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आशा है कि यह जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें और अपने किसान मित्रों के साथ जानकारी साझा करें। जिससे अधिक से अधिक लोग इस जानकारी का लाभ उठा सकें और चुकंदर के खेत में जड़ गांठ सूत्रकृमि की समस्या पर नियंत्रण कर, फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इससे संबंधित यदि आपके कोई सवाल हैं तो आप हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। कृषि संबंधी अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।



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