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चना: तने का सड़ना बन रहा है किसानों के लिए परेशानी का बड़ा कारण
चना: तने का सड़ना बन रहा है किसानों के लिए परेशानी का बड़ा कारण
भारत में अनाज के बाद दूसरी सबसे बड़ी फसलों में मुख्य रूप से चने की खेती की जाती है। चना एक दलहनी फसल है और रबी मौसम की फसलों में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके अलावा साल भर मांग में बने रहने के कारण यह फसल किसानों के लिए भी मुनाफे की फसल मानी जाती है। हालांकि फफूंद जनित रोग इस मुनाफे को हमेशा कम करने के पक्ष में काम करते हुए नजर आए हैं।
चने में फफूंद जनित रोगों में प्रमुख तना सड़न रोग फसल की बुवाई के लगभग कुछ ही समय के भीतर ही देखने को मिल जाता है। फसल में यह रोग स्क्लेरोटियम रोल्फ़सी नामक फफूंद के कारण होता है, जो एक विनाशकारी मिट्टी जनित रोगों में से एक है और फसल में सालाना 10 से 30% उपज हानी का कारण बन सकता है। रोग के प्रकोप से नए अंकुर गिर जाते हैं और पुराने अंकुरों में पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं। इसके साथ ही मिट्टी से सटे हुए तने के निचले हिस्से में सड़न देखी जा सकती है। तने का सड़ा हुआ यह भाग सफेद फफूंद से ढका होता है और संक्रमण के फैलने पर यह रोग खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाई देता है। रोग से फसल बचाव के लिए आवश्यक है कि किसान रोग के लक्षणों की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर नियंत्रण के तरीके अपनाएं।
रोग के लक्षण
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यह रोग फसल की प्रारंभिक अवस्था से बुवाई के छह सप्ताह तक देखने को मिल सकता है।
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सूखे हुए पौधे जिनकी पत्तियां गिरने से पहले थोड़ी पीली हो जाती हैं, खेत में बीमारी का संकेत है।
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अंकुर हरे या पीले रंग के हो जाते हैं।
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मिट्टी से सटे हुए तने का निचला हिस्सा मुलायम होकर थोड़ा सिकुड़ जाता है और सड़ने लगता है।
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संक्रमित भाग भूरे या सफेद हो जाते हैं।
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सफेद संक्रमित पौधे के हिस्सों पर काले बिंदु जैसे (सरसों के आकार के) स्क्लेरोटिया दिखाई देते हैं।
रोग नियंत्रण
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बुवाई के समय अधिक नमी से बचें।
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अंकुर निकलने की स्थिति में खेत में अधिक सिंचाई न करें।
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पिछली फसल के अवशेषों को बुवाई से पहले और कटाई के बाद नष्ट कर दें।
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भूमि की तैयारी से पहले सभी अपघटित पदार्थों को खेत से हटा देना चाहिए।
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बुवाई से पहले टेबुकोनाज़ोल 5.4% एफएस की 0.24 ग्राम मात्रा का प्रयोग प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर को उपचारित करने के लिए करें।
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