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चिरायता : फसल में खेती के साथ कटाई के बाद भी प्रबंधन की मांग

चिरायता : फसल में खेती के साथ कटाई के बाद भी प्रबंधन की मांग

भारतीय इतिहास का एक रोचक और अभिन्न भाग "आयुर्वेद" शब्द से कोई व्यक्ति अछूता नहीं रहा है। देश हो या विदेश यह शब्द अपने नाम और काम दोनों के प्रभाव से एक छाप छोड़ते हुए आया है और लोगों के स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती सजगता को देखकर दिन प्रतिदिन एक बेहतर भविष्य की तरफ बढ़ता देखा जा रहा है। ऐसे में आयुर्वेद की बढ़ती लोकप्रियता और लोगों की स्वास्थ्य के प्रति सजगता को देखते हुए हमारा यह कहना गलत नहीं होगा कि आयुर्वेद किसानों के लिए भी एक मुनाफे का सौदा रहा है। इसके अंतर्गत प्रयोग होने वाली औषधियों की खेती से न केवल किसानों ने अपनी आय को कई गुना तक बढ़ाया है, बल्कि कई अलग-अलग प्रकार की फसलों के चक्रीकरण में व्यर्थ होने वाले अपने समय और श्रम की खपत को भी कम पाया है।

दोस्तों ऊपर दिए आयुर्वेद के एक संक्षिप्त परिचय से हम आशा करते हैं कि हर सप्ताह के पहले दिन प्रकाशित किए जाने वाले हमारे औषधीय फसल लेख से आपने एक नयी औषधि की खेती की जानकारी का अनुमान जरूर लगा लिया होगा। जिसमें आज हम आपको चिरायता की कटाई और कटाई पश्चात प्रबंधन के कार्यों से जुड़ी जानकारी देंगे। चिरायता की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी जैसे आवश्यक समय, जलवायु, खेत तैयार विधि आदि हम पहले भी अपने लेख के माध्यम से दे चुके हैं, जिसे आप एक साधारण प्रक्रिया के साथ देहात ऐप को डाउनलोड कर पा सकते हैं।

बात करें चिरायता की खेती की तो यह औषधि हिमालय के उप समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाई जाने वाली एक फसल है, जिसमें भारत के उत्तर और उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ नेपाल और भूटान जैसे देश भी शामिल है। औषधि बुखार, इम्यूनिटी, डायबिटीज, लीवर, आंख और जोड़ों के साथ कई समस्याओं का रामबाण इलाज है। मार्च-अप्रैल में नर्सरी में बुवाई के बाद फसल जून से जुलाई माह में खेतों में लगा दी जाती है, जो लगभग 7 से 8 महीनों में ही पककर तैयार हो जाती है। चिरायता की फसल में फल और पौधे दोनों ही औषधीय रूप में प्रयोग किए जाते हैं। सूखे हुए फलों को एकत्रित कर हवा बंद डिब्बों में भर लिया जाता है वहीं पौधों को  छायादार स्थान पर सुखाकर थ्रेशर की सहायता से अलग कर संग्रहित कर लिया जाता है।

चिरायता की कटाई के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  • बीज बहुत छोटे आकार के होते हैं, अतः संग्रहण के दौरान पौधों के नीचे कपड़े का प्रयोग अवश्य करें।

  • बीज को अच्छी तरह से सुखाने के बाद ही बीज का संग्रह किया जाना चाहिए।

  • पौधों की जड़ों से मिट्टी को अच्छी तरह से साफ के उपरांत ही उनसे पाउडर का निर्माण करें।

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कई रूपों में प्रयोग होने वाली औषधीय फसल चिरायता किसानों के लिए एक उन्नत व्यावसायिक फसल है, जो कम समय, जमीन और बीज के साथ अधिक लाभ देने के लिए जानी जाती है। चिरायता की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 के माध्यम से देहात के कृषि विशेषज्ञों से जुड़कर उचित सलाह लें।


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