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ब्राह्मी की खेती : वर्ष में तीन से चार बार करें, कटाई होगा अधिक मुनाफा
ब्राह्मी की खेती : वर्ष में तीन से चार बार करें, कटाई होगा अधिक मुनाफा
बाजार में औषधीय पौधों की बढ़ती मांग एवं औषधीय पौधों की खेती से होने वाले मुनाफे के कारण किसानों का रुझान औषधीय पौधों की खेती की तरफ बढ़ता जा रहा है। अब किसान धान, मक्का, गेहूं, आदि पारंपरिक फसलों के अलावा ब्राह्मी, तुलसी, अश्वगंधा, घृतकुमारी, आदि औषधीय पौधों की खेती करना चाह रहे हैं। बात करें औषधीय पौधों की तो अधिक मुनाफे की चाह रखने वाले किसानों के लिए ब्राम्ही की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है। ब्राह्मी की एक बार खेती करके किसान वर्ष में तीन से चार बार कटाई कर सकते हैं। आइए ब्राह्मी की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
ब्राह्मी की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
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ब्राह्मी की खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में की जा सकती है।
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इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 5 से 7 होना चाहिए।
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नहर एवं नदियों के किनारे ब्राह्मी की खेती आसानी से की जा सकती है।
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पौधों के अच्छे विकास के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। इसके लिए सबसे पहले एक बार गहरी जुताई करें।
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गहरी जुताई के बाद दो से तीन बार हल्की जुताई करें और खेत में पाटा लगाएं।
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ब्राह्मी एक औषधीय फसल है इसलिए इसकी खेती में हानिकारक रसायन युक्त उर्वरकों का प्रयोग ना करें।
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पौधों के अच्छे विकास के लिए खेत में गोबर की खाद एवं कंपोस्ट खाद का प्रयोग करें।
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इसकी खेती धान की तरह पहले नर्सरी तैयार करके की जाती है।
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बीज की बुवाई अलावा पौधों की रोपाई के द्वारा भी ब्राह्मी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
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नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की रोपाई खेत में क्यारियां बनाकर की जाती हैं।
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सभी क्यारियों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
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सभी पौधों के बीच की दूरी भी करीब 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
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पौधों की रोपाई के करीब 5 महीने बाद फसल की पहली कटाई की जा सकती है।
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पहली कटाई के हर 3 महीने के अंतराल पर पौधों की कटाई की जा सकती है। इस तरह 1 वर्ष में तीन से चार बार फसल की कटाई की जा सकती है।
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ब्राह्मी की खेती करने वाले किसान इसकी पत्तियों के साथ इसकी जड़ों की बिक्री करके भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
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