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बीन्स की खेती में है झुलसा रोग तो ऐसे करें बचाव
बीन्स की खेती में है झुलसा रोग तो ऐसे करें बचाव
बीन्स एक दलहनी फसल है। बीन्स की फली सेहत के लिए काफी अच्छी होती है। इसकी फलियों का इस्तेमाल सब्जी बनाने, पशुओं के चारे एवं खाद के लिए किया जाता है। भारत में इसकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है। लेकिन बीन्स के खेत में मौसम एवं वातावरण के बदलाव के साथ कई बीमारियों का प्रकोप देखने को मिलता है। इनमें से एक है- झुलसा रोग। इस समस्या के कारण बीन्स फसल के उत्पादन पर प्रभाव देखने को मिलता है। इसलिए रोग पर समय से नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से किसानों को इस रोग के नियंत्रण का उपाय बताएंगे। जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल।
झुलसा रोग के कारण एवं लक्षण
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झुलसा रोग का प्रकोप फसल की बुआई के 3 से 4 सप्ताह बाद दिखने लगता है।
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इस रोग के कारण पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे- छोटे धब्बे उभरने लगते हैं।
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समय के साथ रोग का प्रकोप बढ़ने पर धब्बे के आकार भी बढ़ने लगते हैं।
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इस रोग के प्रकोप से पत्तियां सिकुड़ कर गिरने लगती हैं।
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इसके साथ ही तनों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे बनने लगते हैं।
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इससे फलियों के विकास में बाधा होती है।
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रोग से फलियों में दानों के भरने पर भी असर पड़ता है।
झुलसा रोग पर नियंत्रण के उपाय
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इस रोग के प्रकोप वाले खेत में बार-बार इसकी खेती न करें।
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पुरानी फसल के अवशेषों को जला कर नष्ट कर दें एवं खेत को साफ -सुथरा रखें।
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रोग रोधी किस्मों की खेती करें।
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नाइट्रोजन खाद का अधिक इस्तेमाल न करें।
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जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाएं रखें।
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बीजों का उपचार करने के बाद ही बुआई करें।
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रोग प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।
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रोग के लक्षण दिखते ही खेत में हिनोसान या बाविस्टिन (0.1 प्रतिशत) रसायन का छिड़काव 12-15 दिन के अन्तर पर करें।
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रोग से बचाव के लिए बुआई के 30 से 45 दिन बाद जिंक मैगनीज कार्बामेट 1 से 1.5 किलोग्राम मात्रा को 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें।
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रोग के नियंत्रण के लिए दूसरा व तीसरा छिड़काव कापर आक्सीक्लोराइड 1 से 1.5 किलोग्राम को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से 10-12 दिन के अंतर पर छिड़कें।
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एजाडिरेक्टिन 5 प्रतिशत की 0.5 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी की दर से 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़कें।
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30 मिलीलीटर फिप्रोनिल या थियामेथोक्साम को 15 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें।
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मिट्टी को ध्यान में रखते हुए ही उर्वरकों का प्रयोग करें।
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आशा है कि यह जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें और अपने किसान मित्रों के साथ जानकारी साझा करें। जिससे अधिक से अधिक लोग इस जानकारी का लाभ उठा सकें और बीन्स के खेत में झुलसा रोग पर नियंत्रण कर, फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इससे संबंधित यदि आपके कोई सवाल हैं तो आप हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। कृषि संबंधी अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
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