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भिंडी
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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भिंडी की पत्तियां हो रही हैं पीली, नियंत्रण के लिए जानें विशेषज्ञों की सलाह

भिंडी की पत्तियां हो रही हैं पीली, नियंत्रण के लिए जानें विशेषज्ञों की सलाह

बच्चे हो या बड़े, भिंडी की सब्जी बड़े चाव से खाते हैं। सबकी पसंदीदा सब्जियों में शामिल होने के कारण बाजार में इसकी मांग अधिक होती है, जिसका सीधा असर किसानों के मुनाफे पर होता है। यही कारण है कि देश के कई क्षेत्रों में किसान बड़े पैमाने पर भिंडी की खेती करते हैं। इसके पौधे विभिन्न जलवायु को भी आसानी से सहन कर लेते हैं। इतने गणों के बावजूद भी 60-70 दिनों में तैयार होने वाली यह फसल कई तरह के रोग एवं कीटों से प्रभावित हो जाती है। जिससे पैदावार में भारी कमी देखने को मिल सकती है।

बात करें भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त समय की तो इसकी खेती विभिन्न मैसम में सफलतापूर्वक की जा सकती है। लेकिन ज्यादातर किसान खरीफ मैसम में इसकी खेती करते हैं। बदलते मौसम में फसल में रोग एवं कीटों के पनपने का खतरा भी बढ़ जाता है। वर्तमान समय में भिंडी की फसल में आने वाली समस्याओं में कई क्षेत्रों के किसान पत्तियों में पीली होती शिराओं की शिकायत कर रहे हैं। समय रहते अगर इस समस्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल की उपज में 80 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।

पत्तियों की शिराओं के पीले होने के कई कारण हो सकते हैं। जिनमें से एक है पीला मोजैक रोग जिसे यलो वेन मोजैक रोग भी कहा जाता है। यह एक विषाणु जनित रोग है जो बेगोमोवायरस नामक विषाणु के प्रकोप के कारण होता है। सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीट इस विषाणु को अन्य पौधों में फैलाने का काम करते हैं। भिंडी के अलावा कद्दूवर्गीय फसल भी इस रोग की चपेट में आ सकती है और रोग पर नियंत्रण के लिए अभी तक कोई कारगर दवा उपलब्ध नहीं होने के कारण फसल में भारी क्षति प्राप्त हो सकती है।

पत्तियों के पीले होने का कारण तो जान लिया हमने। लेकिन आज भी कई ऐसे किसान हैं जिन्हें पीला मोजैक रोग के लक्षणों की जानकारी नहीं है। जानकारी के अभाव में कई बार किसान गलत दवाओं का प्रयोग कर देते हैं। जिससे उनकी लागत तो बढ़ती ही है, साथ ही इस रोग पर नियंत्रण भी नहीं हो पाता। इस अब बात करते हैं इस रोग के लक्षणों पर।

पीला मोजैक रोग के लक्षण

  • इस रोग की शुरुआती अवस्था में केवल पत्तियों की शिराओं पर पीलापन नजर आता है।

  • रोग बढ़ने के साथ पूरी पत्ती क्लोरोटिक बन जाती है यानी पूरी पत्ती में पीलापन देखा जा सकता है।

  • पौधों के प्रभावित भाग को ध्यान से देखने पर हम पत्तियों की पीली पड़ी शिराओं के बीच हरापन देख सकते हैं।

  • प्रारंभिक संक्रमण पत्ती की शिराओं और तने पर दिखाई देते हैं। संक्रमित पत्तियां पीली चितकबरी होकर मुड़ने लग जाती हैं।

  • किसी भी अवस्था के पौधे इस रोग से प्रभावित हो सकते हैं।

  • पुष्पण के बाद संक्रमित पौधों के फल भी प्रभावित होते हैं। प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

अब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर बाजार में इस रोग पर नियंत्रण के लिए कोई कारगर दवा उपलब्ध नहीं है तो इस पर नियंत्रण किया कैसे जाए? ऐसे में इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रस चूसक कीटों पर नियंत्रण करना ही एकमात्र उपाय है। इसके अलावा कुछ अन्य बातों पर ध्यान दे कर भी हम भिंडी की फसल को इस रोग से बचा सकते हैं।

पीला मोजैक रोग से बचाव के तरीके

  • इस रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़ के नष्ट कर दें या एकत्रित कर के जला दें।

  • खेत में नाइट्रोजन उर्वरक के अधिक प्रयोग से सफेद मक्खियां आकर्षित होती हैं और पौधों में अपना घर बसा लेती हैं। इसीलिए नाइट्रोजन के अत्यधिक प्रयोग से बचें।

  • अमोनिकल नाइट्रोजन वायरल संक्रमण के प्रति सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसलिए अमोनिकल नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग कम करें।

  • खेत को खरपतवारों एवं अन्य पौधे जैसे क्रोटन स्पसिर्प्लोरा से मुक्त रखें।

  • सफेद मक्खियों पर नियंत्रण के लिए पायरीप्रोक्सीफैन 05% + फेनप्रोपेथ्रिन 15% EC की 150 मिलीलीटर मात्रा या डायफेंथियूरोन 50% WP की 180 ग्राम मात्रा को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें।

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समय रहते रोग एवं कीटों की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए देहात के कृषि विशेषज्ञों से उचित सलाह लेने के लिए हमारे टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क करें। इसके साथ ही आप अपने नजदीकी देहात केंद्र से जुड़कर हाइपरलोकल की सुविधा के द्वारा घर बैठे उर्वरक एवं कीटनाशक भी प्राप्त कर सकते हैं। भिंडी की खेती से जुड़ी अपनी समस्याएं आप हमें कमेंट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं। अन्य किसानों तक यह जानकारी पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।

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