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टिड्डी
Locust Attack In India | टोळधाड
कल्पना
कृषि विशेषयज्ञ
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भारत में टिड्डियों का हमला

भारत में टिड्डियों का हमला

सबसे पहले, आइए समझते हैं कि टिड्डियों का झुंड क्या है और वो फसलों को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं।
टिड्डे एक तरह के कीड़े हैं जो बड़े झुंडों में यात्रा करते हैं और हवा की गति के आधार पर एक दिन में 150 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकते हैं। टिड्डे फसलों को तबाह कर देते हैं और बड़ी कृषि क्षति का कारण बनते हैं , जिससे अकाल और भुखमरी जैसी समस्यां भी हो सकती है।


टिड्डे पत्तियों, फूलों, फलों, बीजों, छाल आदि को खा जाते हैं और बड़ी झुण्ड में होने के कारण अपने भारी वजन से पौधों को नष्ट कर देते हैं।


इनके झुंड काफी बड़े होते हैं। वर्ष 1875 में, अमेरिका ने अनुमान लगाया कि टिड्डियों का झुंड 1,98,000 वर्ग मील या 5,12,817 वर्ग किलोमीटर आकार का है। दिल्ली-एनसीआर के वर्ग से आप इसकी तुलना कर सकते हैं। दिल्ली-एनसीआर केवल 1,500 वर्ग किलोमीटर है जो अमेरिका द्वारा अनुमानित टिड्डियों के झुंड से काफी छोटा है।

टिड्डियों के आक्रमण से होने वाली क्षति

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, टिड्डियों ने 1926-31 के दौरान 10 करोड़ रूपए की फसलों को नुकसान पहुंचाया। 1940-46 और 1949-55 टिड्डी के दौरान लगभग 2 करोड़ रूपए की क्षति और अंतिम टिड्डी झुंड (1959-62) के दौरान 50 लाख रूपए का नुकसान हुआ था।

सरकार 1978 और 1993 के दौरान टिड्डे के आक्रमण को बड़े प्रकोप के तौर पर नहीं मानती है। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार , 190 टिड्डियों के झुंडों ने 1993 में राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, भुज और जालौर जिलों में कम से कम 3,10,000 हेक्टेयर के क्षेत्र पर हमला किया था। वर्ष 1997 और 2005 में इन जिलों में बड़े क्षेत्रों को टिड्डियों से फिर से छुटकारा पाने के लिए रसायनों का सहारा लेना पड़ा।


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