हींग ईरानी मूल का पौधा है। पौधों की लंबाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है। पौधों के ऊपरी जड़ों से निकलने वाले दूध (जिसे ओलियो-गम राल कहते हैं) से हींग तैयार किया जाता है। इसका स्वाद तीखा एवं कड़वा होता है। इसके तेज गंध का कारण इसमें मौजूद सल्फर है। हींग का स्वाद भले ही कड़वा हो लेकिन कई व्यंजनों को तैयार करते समय इसका प्रयोग करने से यह उन व्यंजनों का स्वाद बढ़ा देती है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
विश्व में भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसके बावजूद हमारे देश में हींग की खेती नहीं होने के कारण इसे विदेशों से आयात करना पड़ता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष भारत में 1200 टन कच्चे हींग का आयात किया जाता है। हींग के आयात पर हर वर्ष करीब 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में 1500 टन कच्चे हींग का आयात किया गया। जिसमें करीब 942 करोड़ रुपए की लागत आई।
आयत एवं निर्यात
हींग के कुल आयात का 80 प्रतिशत आयात अफग़ानिस्तान से किया जाता है। इसके अलावा ईरान, बलूचिस्तान, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, आदि देशों से भी हींग आयात किया जाता है।
आयात किए जाने वाले कच्चे हींग यानि ओलियो-गम राल (हींग के पौधों से निकलने वाले दूध) को मैदे के साथ प्रोसेस करके हींग तैयार की जाती है। भारत में बनाई गई हींग का निर्यात कुवैत, कतर, सऊदी अरब, बहरीन आदि खाड़ी देशों में किया जाता है।
भारत में हींग के पौधों की रोपाई
आपको यह जानकर खुशी होगी कि अब हमारे देश में भी हींग की खेती की शुरुआत हो गई है। 15 अक्टूबर 2020 को सीएसआईआर - इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसर्च टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) के निर्देशक डॉ. संजय कुमार के द्वारा हिमाचल प्रदेश के लाहौल घाटी में हींग के पौधों की रोपाई की गई। इस प्रजाति का नाम फेरूला-अस्सा-फोटिडा है।
लागत एवं मुनाफा
हालांकि हमारे देश में हींग की खेती किसानों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। किसानों के सामने आने वाली सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यदि इसके 100 पौधों की रोपाई की जाए तो इनमें से कोई एक पौधा ही अच्छी तरह विकसित हो पाता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हींग की खेती में हमें सफलता मिलती है तो देश के अन्य क्षेत्रों में भी इसकी खेती का प्रयास किया जाएगा। अगर बात करें लागत की तो सीएसआईआर आईएचबीटी के निर्देशक संजय कुमार का कहना है कि अगले 5 वर्षों में किसानों को प्रति हेक्टेयर भूमि में करीब 3 लाख रूपए की लागत आएगी। यह प्रयास सफल होने पर पांचवे वर्ष से किसानों को प्रति हेक्टेयर जमीन से न्यूनतम 10 लाख रुपए का लाभ मिलेगा।
हमारे देश में हींग की खेती की शुरुआत है न एक अच्छी खबर! यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करने के साथ इसे अन्य मित्रों के साथ साझा भी करें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
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