गर्भाशय में गर्भनाल के द्वारा बच्चे को सभी तरह के पोषक तत्व अपनी मां से प्राप्त होता है। लेकिन जन्म के बाद नवजात पशुओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जन्म के बाद उचित देखभाल नहीं करने से नवजात पशु कई तरह के संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। इसलिए नवजात पशुओं को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। यदि आप भी पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं तो इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। यहां से आप नवजात पशुओं की देखभाल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
जन्म के तुरंत बाद किए जाने वाले कार्य
नाक एवं मुंह की सफाई : जन्म के तुरंत बाद बछड़े या बछिया की नाक एवं मुंह की अच्छी तरह सफाई करनी चाहिए। इसके साथ ही नवजात पशुओं के पूरे शरीर को अच्छी तरह सूखे कपड़े से साफ करें। इससे नवजात पशुओं में रक्त संचार सुचारू रूप से होता है।
सांस लेने में तकलीफ : कई बार नवजात पशुओं के फेफड़े पूरी तरह काम नहीं करते हैं। जिससे पशुओं को सांस लेने में कठिनाई होती है। इसके अलावा कई बार नाक एवं मुंह में म्यूकस या जेर का भाग रहने के कारण भी नवजात पशुओं को सांस लेने में कठिनाई होती है। इस समस्या से बचने के लिए नवजात पशुओं की छाती एवं अन्य पसलियों पर हल्की मालिश करें। नाक में जमा तरल म्यूकस साफ करने के लिए सिरिंज का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही नवजात पशुओं की मुंह में दो उंगलियां डालकर जीभ पर रखें। इससे भी म्यूकस बाहर आ सकता है।
गर्भनाल की कटाई : कई बार जन्म के बाद गर्भनाल अपने आप नहीं टूटती है। ऐसी स्थिति में गर्भनाल को 2 इंच की दूरी पर धागे से बांधे। इसके बाद बची हुई नाल को किसी साफ कैची या ब्लेड से काट कर अलग करें।
मां का पहला दूध : जन्म के आधे घंटे के भीतर नवजात पशुओं को मां का पहला दूध पिलाना आवश्यक है। इसके बाद हर 6 घंटे के अंतराल पर नवजात पशुओं को दूध पिलाएं। यदि गाय का कोलोस्ट्रम नहीं निकल रहा है तो 1 लीटर दूध में एक अंडे का पीला भाग एवं आधा चम्मच अरंडी के तेल के साथ आधा ग्राम टेरामाइसिन पाउडर मिलाकर बच्चे को पिलाएं।
कृमि नाशक दवा : नवजात पशुओं के पेट में कीड़े होने से बचाने के लिए जन्म के 21वें दिन नवजात पशुओं को कृमि नाशक दवा पिलाएं। इसके बाद 6 से 8 महीने तक पशुओं को महीने में 1 बार कृमि नाशक दवा अवश्य पिलाएं।
सफाई का ध्यान : नवजात पशुओं में विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है। ऐसे में नवजात पशु कई तरह के संक्रामक रोगों की चपेट में आ सकते हैं। इस समस्या से बचने के लिए पशुओं को स्वच्छ वातावरण में रखें। पशु आवास में नियमित साफ-सफाई का भी ध्यान रखें।
पशु आहार : पशुओं के उचित विकास के लिए 2 महीने की आयु तक पशुओं को दूध पिलाएं। इसके साथ ही पशुओं की आयु 1 महीने होने के बाद उन्हें प्रतिदिन कोमल घास के साथ 100 ग्राम शिशु आहार का सेवन कराएं।
टीकाकरण : 3 माह से 6 माह की आयु तक पशुओं की खाल के नीचे एफ.एम.डी. टीका लगवाएं। 6 माह की आयु से अधिक के पशुओं को खाल के नीचे एच.एस. टीका लगवाएं। 6 माह की आयु से अधिक के पशुओं को मांस वाले भाग में दवा उत्पादक कम्पनी के निर्देश के अनुसार बी.क्यू. टीका लगवाएं।
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