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बढ़ती धान की फसल में नाइट्रोजन की जरूरत और आपूर्ति

बढ़ती धान की फसल में नाइट्रोजन की जरूरत और आपूर्ति

कृषि में नाइट्रोजन एक आवश्यक पोषक तत्त्व हैं। जिसका प्रयोग धान की खेती में तीन चरणों में किया जाता है। जैसे खेत तैयार या जमीन की जुताई करते समय ,बुवाई के एक महीने बाद या रोपाई के दो हफ्ते बाद एवं बालियां निकलते समय। नाइट्रोजन का प्रयोग फसल में अच्छी बालियां बनाने और अधिक दाने पैदा करने में मदद करता है तथा यह चावल के दाने को भी भारी बनाता है। हालांकि फसल में उर्वरक का आवश्यकता से अधिक उपयोग फसल में नुकसान का भी कारण बनता है। ऐसे में हमें इस बात की जानकारी रखना बेहद जरुरी है की आखिर फसलों में उर्वरक की आवश्यकता कब और कितनी मात्रा में होती है।

धान में नाइट्रोजन की आवश्यकता

  • भारत में मुख्य रूप से उत्तर पूर्वी  क्षेत्र की बात करें तो सभी जगह रोपाई हो चुकी है और धान की फसल वानस्पतिक विकास के शीर्ष अवस्था में है।  इसलिए इस अवस्था में रोपाई के 21 दिन बाद यूरिया का एक तिहाई हिस्सा प्रयोग में लाएं।

  • देश के उत्तरी इलाकों में फसल अभी फूल अवस्था में है, जिसमें अधिकतम फूलों की संख्या का होना और सभी फूलों का परिपक्व होकर दानों में बदलने की क्रिया होती है। इस दौरान पौधों को प्रोटीन की आवश्यकता अधिक होती है। फसल के 45 दिनों की अवस्था के दौरान और निचली पत्तियों का पीला होने पर फसल में यूरिया द्वारा नाइट्रोजन की आपूर्ति की जा सकती है।

नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से होने वाले नुकसान

  • पौधों में पूर्णरूप से जड़ का विकास नही हो पाता है।

  • फूल कम खिलते हैं तथा अधिक फूल झड़ने की समस्या बढ़ जाती है।

  • पौधे की उचाई बढ़ जाती तथा हवा से पौधे नीचे की ओर झुकने लगते हैं।

  • रोगों एवं कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।

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