अनेक पोषक तत्वों से भरपूर बैंगन सर्वाधिक पसंद किए जाने वाले सब्जियों में से एक है। बैंगन की खेती करते समय कई तरह के कीट एवं रोगों से बचने के लिए सावधानी की आवश्यकता होती है। जरा सी चूक से विभिन्न कीट एवं रोगों के प्रकोप से फसल को भारी नुकसान हो सकता है। बैंगन में लगने वाले इन रोगों में से एक है फोमोप्सिस झुलसा रोग। इस रोग से बचने के लिए इसके लक्षण एवं बचाव के उपाय यहां से देखें।
रोग का कारण
यह रोग फोमोप्सिसवेकसेन्स नामक कवक के द्वारा होता है।
इस रोग से आमतौर पर बैंगन, टमाटर और हरी मिर्च की फसलों को नुकसान होता है।।
रोग का लक्षण
इस रोग का लक्षण पौधों की पत्तियों, तना एवं फलों पर साफ नज़र आता है।
इस रोग के शुरुआत में पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
आकार में गोल यह धब्बे सबसे पहले पौधों की निचली पत्तियों पर उभरते हैं।
कुछ समय बाद यह धब्बे फट जाते हैं और पत्तियों में छेद बन जाता है।
इस रोग से प्रभावित पत्तियां सूख जाती हैं।
रोग बढ़ने पर यह धब्बे तने एवं फलों पर भी दिखाई देते हैं।
धीरे-धीरे इस रोग से पौधों का तना सूखने लगता है।
इस रोग से प्रभावित बैंगन के फलों पर भूरे रंग के मुलायम दाग नजर आते हैं।
कुछ समय बाद इस रोग के प्रकोप से फल सड़ने लग जाता है।
बचाव के उपाय
उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित एवं रोग रहित बीज का का ही चयन करें।
इस रोग से बचने के लिए अनाज वाली फसलों का फसल चक्र अपनाएं।
पौधों व पंक्तियों के बीच ज्यादा अंतराल रखें।
नाइट्रोजन उर्वरक का संतुलित प्रयोग करें।
रोक से संक्रमित पत्ते एवं फलों को इकट्ठा करके जला कर या मिट्टी में दबा कर नष्ट कर दें।
प्रभावित पौधों को उखाड़ कर खेत से बाहर निकाल दें।
बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 5 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचारित करें।
पौधों की रोपाई के करीब 10 से 15 दिनों बाद एवं पौधों में फूल लगते समय प्रति लीटर पानी में 1.5 ग्राम कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
इसके अलावा पौधों की पत्तियों पर कैप्टान, जीनेब, मैनकोज़ेब आदि कवकनाशी दवाओं का भी छिड़काव कर सकते हैं।
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