हरित बाली रोग को मृदु रोमिल आसिता रोग के नाम से भी जाना जाता है। बाजरे की खेती करने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप होता है। इस रोग के कारण पौधों में बालियों में दानों की जगह टेढ़ी-मेढ़ी हरे रंग की पत्तियां निकलने लगती हैं। समय रहते इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है। आइए बाजरा की फसल में होने वाले हरित बाली रोग पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
हरित बाली रोग के लक्षण
इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
पत्तियों की नीचली सतह पर सफेद चूर्ण की परत नजर आती है।
रोग बढ़ने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।
यदि बालियां बन भी जाएं तो उनमें दानों की जगह छोटी-छोटी पत्तियां निकलने लगती हैं।
प्रभावित पौधों की पत्तियां मिट्टी में गिरने से अगले वर्ष की फसल में भी इस रोग के होने का खतरा होता है।
पौधों के विकास में बाधा आती है।
हरित बाली रोग पर नियंत्रण के तरीके
इस रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम रीडोमील एम.जेड 72 डब्लू.पी से उपचारित करें।
रोग से प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें।
इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम रीडोमील एम.जेड मिला कर छिड़काव करें।
इसके अलावा 0.35 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का भी छिड़काव कर सकते हैं।
आवश्यकता होने पर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
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