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अश्वगंधा की खेती
अश्वगंधा की खेती
अश्वगंधा कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फसलों में से शामिल है। इसका सबसे अधिक प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी खेती से पहले खेती की बारीकियां जानना आवश्यक है।
मिट्टी एवं जलवायु
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इसकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है।
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अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में नमी और शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है।
खेत की तैयारी
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खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
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बारिश ऋतू के शुरू होने से पहले खेत की 2-3 बार जुताई करें।
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खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें।
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अच्छी फसल के लिए प्रति एकड़ खेत में 6 किलोग्राम नाईट्रोजन मिलाएं।
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खेत तैयार करते समय मिट्टी में गोबर की खाद मिलाएं।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।
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दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 45 से 50 दिनों बाद करें।
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वर्षा के मौसम में सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।
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लगभग 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
उत्पादन
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बुवाई के 150 से 170 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।
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प्रति एकड़ जमीन से 120 से 160 किलोग्राम सूखी जड़ प्राप्त होती है।
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प्रति एकड़ जमीन 20 से 24 किलोग्राम बीज प्राप्त कर सकते हैं।
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