अमरूद भारत के लोकप्रिय फलों में से एक है। इसमें विटामिन सी की अधिक मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए , विटामिन बी, आयरन और फॉस्फोरस भी पाए जाते हैं। अमरूद स्वस्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। इस पर तापमान में अधिक उतार -चढ़ाव, अधिक वर्षा, सूखा, ठंड, गर्म हवा आदि का कम प्रभाव होता है।
जलवायु एवं मिट्टी
अमरूद के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे अच्छा माना जाता है।
अधिक ठंड से केवल छोटे पौधों को ही नुकसान होता है।
इसे लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। लेकिन बेहतर उत्पादन के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है।
इसके लिए मिट्टी का पी.एच स्तर 6 से 7.5 होना चाहिए।
पौधों की रोपाई एवं सिंचाई
पौधों को लगाने के लिए जुलाई - अगस्त का महीना सबसे बेहतर होता है। सिंचाई की सुविधा वाले स्थानों पर फरवरी - मार्च में भी पौधों को लगाया जा सकता है।
पौधों को लगाने के लिए समतल खेत में 60 सेंटीमीटर गहराई एवं 60 सेंटीमीटर चौड़ाई के गड्ढे तैयार करें।
इन गड्ढों को 15 - 20 दिनों के लिए खुला रहने दें। इससे खेत में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाएंगे।
एक पौधे की दूसरे पौधे से करीब 2 से 3 मीटर की दूरी पर लगाएं।
दो वर्ष से कम उम्र के पौधों को भारी भूमि में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। वहीं हलकी भूमि में 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
दो वर्ष से कम उम्र के पौधों को भारी भूमि में करीब 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वहीं हलकी भूमि में 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है।
खाद का प्रयोग
अच्छी पैदावार के लिए प्रति पौधा 6 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग करें।
खेत में गोबर खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसके अलावा 4 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट के साथ 100 ग्राम जैविक खाद का छिड़काव करने से उच्च गुणवत्ता के फलों की प्राप्ति होती है।
फलों की तुड़ाई
पौधों में फूल आने के करीब 120 से 140 दिनों में फल पकने शुरू हो जाते हैं। जब फलों का रंग हल्का पीला होने लगे तब इसकी तुड़ाई करें।
फलों की भंडारण क्षमता कम होती है इसलिए जब बाजार करनी हो तभी तुड़ाई करनी चाहिए।
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