हमारे देश में करीब 20 किस्मों की अखरोट की खेती की जाती है। इसका सबसे अधिक उपयोग सूखे मेवे के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल मिठाइयों एवं कई अन्य वयंजनों में भी किया जाता है। इससे कई तरह के सौंदर्य पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं। आइए अखरोट की खेती पर विस्तार से जानकारियां प्राप्त करें।
भारत के किन क्षेत्रों में की जाती है अखरोट की खेती?
हमारे देश में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है।
अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त समय
अखरोट के पौधों की रोपाई के लिए दिसंबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त है।
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
पौधों के विकास के लिए ठंडे जलवायु की आवश्यकता होती है।
गर्म जलवायु में पैदावार पर प्रतिकूल असर होता है।
खेत की तैयारी एवं पौधों की रोपाई
सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें।
बुवाई के समय खेत में आवश्यकता के अनुसार हरी खाद मिलाएं। इससे खेत में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।
हरी खाद की जगह गोबर की खाद का भी उपयोग कर सकते हैं।
इसके बाद खेत को समतल बनाएं।
अब खेत में 1 मीटर लम्बा, 1 मीटर चौड़ा एवं 1 मीटर गहरा गड्ढा तैयार करें।
सभी गड्ढों में 50 ग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम फॉस्फेट एवं 35 ग्राम पोटाश को मिट्टी में मिला कर भरें।
अब इन गड्ढों में पौधों की कटिंग की रोपाई करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
बीज की रोपाई के बाद पहली सिंचाई करें।
वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
गर्मी के मौसम में पौधों को सिंचाई की अधिक आवश्यक होती है।
पानी की बचत के लिए ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करें।
खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें।
फलों की तुड़ाई एवं पैदावार
फलों की तुड़ाई अगस्त से नवंबर महीने के बीच की जाती है।
शेल से करीब 75 प्रतिशत अखरोट छिल जाने के बाद फलों की तुड़ाई की जाती है।
प्रति वृक्ष 125 से 150 किलोग्राम अखरोट प्राप्त किया जा सकता है।
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