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अधिक मुनाफा के लिए इस तरह करें पालक की खेती
अधिक मुनाफा के लिए इस तरह करें पालक की खेती
हरी पत्तेदार सब्जियों में पालक का प्रमुख स्थान है। हमारे देश में बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगना, आंध्र प्रदेश, केरल आदि राज्यों में इसकी प्रमुखता से खेती की जाती है। व्यावसायिक रूप से पालक की खेती करने के लिए इसकी खेती से जुड़ी आवश्यक जानकारियां यहां से प्राप्त करें।
मिट्टी एवं जलवायु
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उचित जल निकास वाली चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी.एच 7 हो में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है।
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इसके अलावा रेतीली चिकनी मिट्टी और जलोढ़ मिट्टी में भी इसकी अच्छी पैदावार होती है।
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बेहतर पैदावार के लिए पालक की खेती ठंड जलवायु में करनी चाहिए।
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इसकी खेती के लिए 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सर्वोत्तम है।
खेत की तैयारी एवं उर्वरक प्रबंधन
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खेत की तैयारी करते समय खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से 1 बार जुताई करें।
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इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करें।
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हल्की जुताई के लिए देशी हल, हैरो या कल्टीवेटर का प्रयोग करें।
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इसके बाद पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल बना लें।
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आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद के साथ 8 किलोग्राम फिप्रोनिल मिलाएं।
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इसके साथ ही प्रति एकड़ खेत में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 24 किलोग्राम पोटाश मिलाएं।
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20 किलोग्राम नाइट्रोजन का खड़ी फसल में छिड़काव करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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बुवाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई करें।
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खेत की मिट्टी में नमी की कमी ना होने दें।
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करीब 7 से 8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें।
कटाई एवं पैदावार
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बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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इसके बाद हर 20 से 25 दिनों के अंतराल पर आप कटाई कर सकते हैं।
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एक बार बुवाई करने के बाद 5 से 6 बार कटाई करके फसल प्राप्त किया जा सकता है।
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प्रति एकड़ खेत से 32 से 35 क्विंटल तक पालक की हरी पत्तियां प्राप्त होती हैं।
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