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अच्छी पैदावार के लिए इस तरह करें अरंडी की खेती
अच्छी पैदावार के लिए इस तरह करें अरंडी की खेती
अरंडी के तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए अच्छी आय का स्त्रोत बन सकती है। अगर आप भी करना चाहते हैं अरंडी की खेती तो इसकी खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, खेत की तैयारी, खाद एवं उर्वरक की मात्रा, आदि जानकारियां यहां से प्राप्त करें।
मिट्टी एवं जलवायु
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इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
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बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है।
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अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए जल जमाव वाली भूमि एवं क्षारीय मिट्टी वाली खेत का चयन न करें।
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इसकी खेती के लिए सभी तहत की जलवायु उपयुक्त है।
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अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए सूखे एवं गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में इसकी खेती करनी चाहिए।
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अरंडी के पौधे लंबे समय तक सूखे को सहन कर सकते हैं।
खेत की तैयारी
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आमतौर पर प्रति एकड़ खेत में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 8 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है।
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खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 8 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 8 किलोग्राम फास्फोरस मिलाएं।
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बचे हुए 8 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव खड़ी फसल में करें।
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अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 400 किलोग्राम गोबर की खाद मिलाएं।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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अरंडी की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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यदि सिंचाई की उचित व्यवस्था है तो 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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यदि आपके क्षेत्र में पानी की कमी है तो आप केवल तीन सिंचाई करके भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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जल की कमी वाले क्षेत्रों में बुवाई के 75 दिनों बाद पहली सिंचाई, बुवाई के 95 दिनों बाद दूसरी सिंचाई एवं बुवाई के 100 दिनों बाद तीसरी सिंचाई करें।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें।
तुड़ाई एवं पैदावार
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जब सिकरों का रंग हरे से पीला होने लगे तब इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
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आमतौर पर पहली तुड़ाई बुवाई के 90 से 120 दिनों बाद की जाती है।
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इसके बाद प्रत्येक 30 दिनों के अंतराल पर तुड़ाई कर सकते हैं।
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तुड़ाई के बाद सिकरों को धूप में सूखाना चाहिए।
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सूखे क्षेत्रों में प्रति एकड़ खेत से 320 से 400 किलोग्राम तक उपज होती है।
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सिंचाई वाले क्षेत्रों में प्रति एकड़ खेत से करीब 600 से 1040 किलोग्राम तक पैदावार होती है।
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